यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें
यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें चलते मुसाफ़िर में काश रहती मिन्नतें डोर बंधी इन सांसों की रागों से, फ़कत रूबरू हुए रूह की धागों से। जिस्म की खुबियां...
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