Posts Tag: सामाजिक विसंगतियां 8 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Lovi Mishra 31 May 2024 · 1 min read आखिर मैं हूं ऐसी क्यों आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों? आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों? मैं कैसे भूलूँ वो सपना? जो हो न सका कभी अपना आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों? मैं हुई नहीं उस... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · महिला सशक्तिकरण · मुक्तक · सामाजिक विसंगतियां · स्त्री विमर्श 1 165 Share Lovi Mishra 31 May 2024 · 1 min read नए साल का सपना साल बदल जाये तो क्या , समय न अभी भी बदला है पूस माघ में छुटकू के तन पर, अब भी फटा ही झबला है कब वो दिन आएगा जब,... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · बचपन का दर्द · मुक्तक · सामाजिक विसंगतियां · सामाजिक सरोकार 173 Share Lovi Mishra 31 May 2024 · 2 min read हम क्यूं लिखें हम क्यूँ लिखे अपनी मजबूरियां, क्यूँ लिखें कि वो ध्यान नहीं रखता मेरे वजूद का हम क्यूँ लिखें कि हम मोहताज हैं, उसके और वो समझता नहीं मुझे, कुछ भी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · महिला दिवस · महिला सशक्तिकरण · सामाजिक विसंगतियां · स्त्री विमर्श 218 Share Lovi Mishra 30 May 2024 · 1 min read अछूत कब हुआ होगा पहली बार ऐसा जब अछूत कहलाया,स्त्री का स्त्रीत्व वही स्त्रीत्व जिससे जन्मता है पुरूष भी… फिर क्यों नहीं अछूत हुआ वो पुरूष भी जो जन्मा है उसी... Poetry Writing Challenge-3 · अनुभूत · कविता · सामाजिक कुरीति · सामाजिक विसंगतियां · स्त्री विमर्श 1 149 Share Lovi Mishra 30 May 2024 · 1 min read सच की माया आज मैं हूँ उलझन में अपनों से अनबन में जो कभी सोचा नहीं वो घट रहा है जीवन में झूठ और फरेब ही क्या आज बहुमूल्य है मेहनत के पानी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · जिंदगी का सच · मुक्तक · सच · सामाजिक विसंगतियां 1 138 Share श्रीकृष्ण शुक्ल 1 May 2018 · 1 min read हम श्रमिक आज श्रमिक दिवस है. श्रमिक की वेदना व्यक्त करती मेरी कविता. हम श्रमिक हम रहे श्रमिक हम क्या जानें अच्छे दिन कैसे होते हैं दो जून की रोटी की खातिर,... Hindi · काव्य संग्रह 1 · गीत · सामाजिक विसंगतियां 327 Share श्रीकृष्ण शुक्ल 21 Mar 2018 · 1 min read फुटपाथों का बचपन आँखों में अगणित प्रश्न लिए और मन में बस जिज्ञासा तन से कोमल मन से कुंठित लगता है डरा डरा सा बचपन में मानो जान लिया हो सारा जीवन दर्शन... Hindi · कविता · काव्य संग्रह 1 · सामाजिक विसंगतियां 626 Share श्रीकृष्ण शुक्ल 17 Sep 2017 · 1 min read श्वासों का होम नित्य होम श्वासों का करता हूँ नित्य ही जीता नित्य ही मरता हूँ सूनी आँखों में स्वप्न सँजोए हैं, बगिया में थोड़े पौधे बोए हैं विकसित होंवें ये फूलें और... Hindi · काव्य संग्रह 1 · गीत · सामाजिक विसंगतियां 1 702 Share