क्यों अब हम नए बन जाए?
क्यों न अब हम नये बन जाएँ? त्यागे याग,पुरा'णी'बातें, रियाज-मिज़ाज, बुनियादी यादें । हाँ-हाँ उनमें, है बर्ताव कटु, बेहिसाब आँसू , बदनसीब 'सकू*, इन्हें विष मानकर ,छोड़ते जाएं। क्यों न...
Poetry Writing Challenge-2 · कविता · खुद से बातें · पुराने संदर्भ · लोग · संसार