Posts Tag: रजकण 22 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 Next Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 23 Mar 2025 · 1 min read सुलभ कांत ///सुलभ कांत/// झरती बरबस दृग जल धार, आहें अंतर से शुचि बारंबार। तुम आत्म प्राण श्रृंगार सुधा, मेरे सद्-संबल जीवन आधार।। आत्म पर्व यह प्राण पर्व यह, अरु नाद तेरा... Hindi · कविता · रजकण 95 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 22 Mar 2025 · 1 min read जाग मनुज ///जाग मनुज/// जाग जाग रे जाग मनुज।। छल छद्म बंध तोड़ आज। रहा सिंहासन उर्ध्व विराज।। सद् विचार सुपंथ स्वकाज। तो कहां दुर्लभ वह रामराज।। तू क्यों है किंकर्तव्य विमूढ़।... Hindi · कविता · रजकण 110 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 21 Mar 2025 · 1 min read जीवन अनुबंधन ///जीवन अनुबंधन/// अहे! प्राण जीवन अनुबंधन।। यह कैसा प्रबल विवर्तन, यह कैसा आत्म परिवर्तन । करता नयनों में प्रति नर्तन, या दृग जालों का संवर्धन।। यह कैसा जग का स्यंदन।... Hindi · कविता · रजकण 1 2 127 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 19 Mar 2025 · 1 min read चंद प्रश्न ///चंद प्रश्न/// हैं टिमटिमाते दीप जो, है उनमें वही उर की व्यथा। भेज चहुं दिश अंशुओं को, तम से सुनाते वे कथा।।१।। टंकार सुनकर धनुष की, उसका हृदय दहल जाएगा।... Hindi · कविता · रजकण 99 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 19 Mar 2025 · 1 min read माता का हाथ ///माता का हाथ/// हे ! मातेश्वरी सरस्वती तुम्हारी शुचि प्रेरणा उससे उद्भाषित आलोक पथ व तुम्हारे हृदय-स्पंदन-स्नेह हमें देते हैं आत्मतोष।। जीवन का सुमंगल गीत तुम्हारे ही अंतर हृदय से... Hindi · कविता · रजकण 88 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 17 Mar 2025 · 1 min read अनुराग द्विविद्या ///अनुराग द्विविधा/// उड़ रही गगन में आज धूल, उलझ गया चिकुर में एक फूल। मिल चली उसे वाती अनुकूल, चल उड़ चल रे तू झीन दुकूल।। निरभ्र नील गगन का... Hindi · कविता · रजकण 101 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 16 Mar 2025 · 1 min read सुधा प्रसाद ///सुधा प्रसाद/// तुम्हारे नयनों में घिर प्रात, नीरव स्पंदों में उर गात । तुम्हारे ही उद्गारों में कौन, नित डूबा रहता प्रति-जात।। तुम्हारा विभु सुधा प्रसाद, जीवन मर्म अविज्ञात। चिर... Hindi · कविता · रजकण 146 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 15 Mar 2025 · 1 min read स्मृति मीमांसा स्मृति मीमांसा ----------------- स्मृतियों के अविस्मृत क्षण पलों का यह भाव भरा संसार। जीवन औदार्य संघर्ष पीड़ा सभी कुछ पा लेते आकार।। कृत कर्मों के मीठे मीठे स्पंदन होते झंकृत... Hindi · मुक्तक · रजकण 124 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 7 Mar 2025 · 1 min read नीरव गीता ///नीरव गीता/// मेरे सहज ही गान चंचल, ढूंढते रहे जो साम्य अंचल। तेरी शरण ही आज लूंगी, ले लो मुझे हे शांत अविरल।। जल रहा निरंतर दीप यह, इसकी सहज... Hindi · कविता · रजकण 94 Share Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan" 6 Mar 2025 · 1 min read स्वप्निल दृग ///स्वप्निल दृग/// प्रिय प्राण मेरा दृग अंचल में सोता है।। उद्वेलित सागर उद्वेलित अग जग। कूजते सदा थल नभ में खग मृग।। अब देख लें कब कौन यहां रोता है।... Hindi · कविता · रजकण 105 Share Previous Page 2 Next