अब तो मिलने से भी घबरा रहा हूँ
हूँ मैं काला तिल उनकी गालों का, उनकी ज़ीनत का मैं पहरा रहा हूँ। लोग बढ़ते रहे आगे मुझसे, मैं वही का वहीं ठहरा रहा हूँ। खायीं हैं ठोकरें हज़ारों...
Poetry Writing Challenge · ग़ज़ल/गीतिका · घबराहट · तकदीर शायरी · नज़्म · शेर