SP57 वृद्ध पिता को /सूरज का शहर/ विकराल ज्वाल /जाति धर्म संप्रदाय
SP वृद्ध पिता को/ सूरज का शहर/ विकराल ज्वाल/ जाति धर्म और संप्रदाय
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वृद्ध पिता को नहीं पूछते बेटे इसमें हैरत क्या
क्या उम्मीद करें अपनो से उनको समय बताएगा
वक्त बदलते देर न लगती समय को आने जाने में
तय मानिए समय का शीशा उनको समय दिखाएगा
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सूरज का शहर होता ही नहीं उसका सारा भूमंडल है
वह तीव्र जनित ज्वाला वाला ईश्वर का दिव्य कमंडल है
करता है प्रकाशित सकल सृष्टि दूरी प्रभु ने निर्धारित की
अनगिनत धधकते हवन कुंड का एक वृहद दावानल है
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विकराल ज्वाल लपटें विशाल यों धधक रहा है दावानल
सूरज की तपन आकुल है मन है अजब गजब सा कोलाहल
उस परमपिता ने रची सृष्टि ब्रह्मांड बना डाला है नया
गांडीव जनित टंकारो से है मची हुई कुछ उथल-पुथल
निस्तब्ध पूछती है आत्मा हम क्यों आए हैं पता नहीं
मेरे अनाम अब उत्तर दे अब जाना है क्या और कहीं ?
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जाति धर्म और संप्रदाय के मजहब से बाहर तो निकलो
खुद को देखो आईने में और बताओ क्या खुद को पहचान रहे हो
राजनीति के चतुर खिलाड़ी तुम्हें जमूरा बना रहे हैं
एक इशारे पर उंगली के जहां चाहते नचा रहे हैं
हम बदलेंगे इस खेले को अपने मन में ठान रहे हो
क्या खुद को पहचान रहे हो
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डॉक्टर// इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp, 57