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20 Nov 2024 · 1 min read

Sp55 वतन पे मिटना/ जिंदगी की परिधि

Sp55 वतन पे मिटना/ जिंदगी की परिधि
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वतन पे मिटना है एक इबादत जिसे लोग कहते हैं शहादत
वही उजाला फैल जाएगा जहां लहू का गिरा है कतरा

समय स्वयं लिख रहा कहानी इसी को कहते हैं जिंदगानी
अमर हुए बन गए जो किस्सा जहां लहू का गिरा है कतरा

कलम हुई नत झुकाए मस्तक लिखती है इतिहास निरंतर
हर एक जर्रे ने दी गवाही जहां लहू का गिरा है कतरा

वही है अपना बना जो सपना वतन की खातिर जो मिट गया है
हर आंख नम हो बरस रही है जहां गिरा है लहू का कतरा

है ना नाज हमको कि प्राण देकर आएंगे फिर इसी धरा पर
वहीं पे महकेंगे फूल बनकर हैं जहां गिरा है लहू का कतरा
@
जिंदगी की परिधि खुद ही गतिशील है
हमको लगता है हम चल रहे है सतत
केंद्र से दूरी होती कभी भी ना कम
सारे रुक जाएंगे रुक गया गर वो पथ

वह नचाता हमें कठपुतलियां हैं हम
वो इशारा करेगा तो रुक जाएंगे
डोर हाथों में है समय के हाथ में
अश्व गतिशील हैं चल रहा है यह रथ

आए हैं क्यों यहां जाएंगे कब किधर
फिर से जनमेंगे या मोक्ष पा जाएंगे
कोई सुलझा ना पाया इसे आज तक
एक पहेली निरंतर रही मन को मथ

काले हैं या सफेद हम हैं मोहरे फकत
खेलता है खिलाड़ी बहुत ध्यान से
कोई प्यादा बनेगा हाथी घोड़ा वजीर
किसको इस खेल में अब मिलेगी बढ़त
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp55

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