sp133 मैं अज्ञानी /वामपंथी सेकुलर/ वह कलम की धार
sp133 मैं अज्ञानी
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मैं अज्ञानी मन पढ़ने का करता सतत प्रयास निरर्थक
सबसे पुरानी पीर हृदय की नहीं निकलता अहम का कीड़ाp
चाहे जितने जतन करो तुम होंगे सब प्रयास असफल ही
आसानी से नहीं निकलता मन मे भरे वहम का कीड़ा
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वामपंथी सेकुलर और मजहबी सारे दीवाने
सब सनातन के विरोधी हैं जताना चाहते हैं
और लगे हैं इस जतन में किस तरह नीचा दिखाए
मिल के सारे वो हुनर अपना दिखाना चाहते हैं
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वह कलम की धार थी शाश्वत सृजन करती रही
चांद सूरज के ग्रहण को भी नमन करती रही
दोपहर तपती हुई या भोर अलसाई हुई
उनको अंधेरी रात में दीपक बना जलती रही
गीत ऋषि का साथ पाया काव्य का दीपक जला
भोर होने तक तरन्नुम गीतिका चलती रही
अनवरत ही चल रहा जो सांस का बाकी सफर है
जानता कोई नहीं भी क्या उजालो की डगर है
कारवा तो चल रहा है और चलता ही रहेगा
कब तलक जाने मुसाफिर धूप में जलता रहेगा
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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