sp116 बुझने लगे दीप
sp116 बुझने लगे दीप
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बुझने लगे दीप की लौ जब समझो बाती सूख रही है
होने वाला समय है पूरा नये सफर पर अब जाना है
चुकने वाला तेल दिये का कोई नहीं भर सकता उसको
नए वस्त्र धारण करने पर अवसर हम सब का आना है
समय वह आता है आने दो वेंटिलेटर पर देह मत रखो
रोके रुकती नहीं आत्मा फिर काहे का पछताना है
कहां का सफर कब जाना है मानव नहीं ज्ञान पाया है
इस बस्ती से किस बस्ती तक लगा हुआ आना जाना है
छूटा यहां जो नहीं मिलेगा यहां का दीपक कहां जलेगा
अन उत्तरित प्रश्न जीवन का मुश्किल इसको सुलझा पाना है
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समय का दरिया बहा जा रहा था सागर तट की ओर
नहीं लौटता बहता पानी नहीं किसी का जोर
कोई ज्ञानी दे दे उत्तर उसका है उपकार
जानना चाहता है यह मानव क्या है समय के पार
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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