रंग बिरंगी दुनिया होती हैं।
मै श्मशान घाट की अग्नि हूँ ,
लड़को यह जानने समझने के बाद बहुत आसानी होगी तुम्हे कि नदी हम
व्यंग्य कविता- "गणतंत्र समारोह।" आनंद शर्मा
गर्म दोपहर की ठंढी शाम हो तुम
*घर में तो सोना भरा, मुझ पर गरीबी छा गई (हिंदी गजल)
वो कुछ इस तरह रिश्ता निभाया करतें हैं
हम भी मौजूद हैं इस ज़ालिम दुनियां में साकी,
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
Vishnu Prasad 'panchotiya'
राममय दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'