*जो लूॅं हर सॉंस उसका स्वर, अयोध्या धाम बन जाए (मुक्तक)*
दीप ज्योति जलती है जग उजियारा करती है
दु:ख का रोना मत रोना कभी किसी के सामने क्योंकि लोग अफसोस नही
कली कचनार सुनर, लागे लु बबुनी
अब हम उनके करीब से निकल जाते हैं
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू...!!
ग़ज़ल- तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है- डॉ तबस्सुम जहां
यहां कुछ भी स्थाई नहीं है
भाषा और बोली में वहीं अंतर है जितना कि समन्दर और तालाब में ह
बदल जाएगा तू इस हद तलक़ मैंने न सोचा था
सपने
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हे विश्वनाथ महाराज, तुम सुन लो अरज हमारी
जीवन बहुत कठिन है लेकिन तुमको जीना होगा ,
अब रह ही क्या गया है आजमाने के लिए