गंगा- सेवा के दस दिन..पांचवां दिन- (गुरुवार)
"इंसान, इंसान में भगवान् ढूंढ रहे हैं ll
शिकायत
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
रहता है जिसका जैसा व्यवहार,
కృష్ణా కృష్ణా నీవే సర్వము
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
राधा का प्रेम कहें भक्ति कहें उनका नाम कृष्ण से जुदा हो नहीं
जिंदगी जिंदादिली का नाम है
जो दिल में उभरती है उसे, हम कागजों में उतार देते हैं !
विचारों का शून्य होना ही शांत होने का आसान तरीका है
होते हम अजनबी तो,ऐसा तो नहीं होता
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
प्यार सजदा है खूब करिए जी।
ढल गया सूरज बिना प्रस्तावना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
*रोज बदलते अफसर-नेता, पद-पदवी-सरकार (गीत)*