Ram
और कुछ मैं क्या पढू मैने पढ़ा है राम को।
और जपतप क्या करूं मैं जपूं श्री राम को।।
थे निभाने धर्म कुछ तो विषय बहु पढ़ने पड़े।
थे वे शिक्षा से जुड़े जीवन परीक्षा से जुड़े।।
क्यों पढूं दर्शन कोई, साहित्य लेखन क्यूं पढूं।
दे रहा जीवन था दर्शन तो अदृश्य दर्शन क्यूं पढूं।।
न राज छीन जाने से डर न वन चले जाने से डर।
न डर किसी अपनों से हो न राही अनजाने से डर।।
न छोभ कैकेई कृत्य का, न शोक दशरथ मृत्यु का।
दुःख था सिया के हरन का व दुख जटायु मृत्यु का।।
जो था बड़ों से भी बड़ा और छोटों के संग था खड़ा।
जो ऋषियों सनातन धर्म खातिर युद्ध रावण से लड़ा।।
है सत्य करुणा प्रेम जो, शबरी को खुद से जोड़ता है।
वध जो करता बालि का रावण का मद भी तोड़ता है।।
तोड़ता नही जो मर्यादा निज वचन मान जो रखता है।
सत्य प्रेम करुणा वाला वह श्री राम सभी में बसता है।।
जो है मर्यादा में रहते और जिसने श्री राम को धारा है।
मैं कसम राम कह सकता हूं उसने रावण को मारा है।।
राम एक है पर जीवन में सबके अपने अपने रावण है।
मर्यादित अपने कर्मो से,हम सबने मारे अपने रावण है।।
भूख,गरीबी, रोग, भोग, सुख, ये क्या रावण से कम है।
इनपे विजय बताओ ‘संजय’ क्या रावण वध से कम है।।
जै श्री राम