suresh sangwan Tag: कविता 5 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid suresh sangwan 11 Dec 2016 · 1 min read ज़बान पे कुछ और है दिल में है कुछ और ज़बान पे कुछ और है दिल में है कुछ और जिस्म के दर्द और हैं दिल के हैं कुछ और ज़माने भर की बातें वो मुझसे बोलता रहा मैने जो... Hindi · कविता 355 Share suresh sangwan 11 Dec 2016 · 1 min read तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा कमान में जो तीर था जाने कहाँ जाता रहा कुछ और नही वो मेरा ख्वाब सुहाना था विसाल-ए-यार का था भरम जाता... Hindi · कविता 377 Share suresh sangwan 11 Dec 2016 · 1 min read ख्वाहिशों में खुद को उलझा के निकलती हूँ ख्वाहिशों में खुद को उलझा के निकलती हूँ ज़िंदगी तिरे दर से में मुरझा के निकलती हूँ होते होते शाम के ये उलझ ही जाती है रोज़ सवेरे ज़ुल्फ को... Hindi · कविता 1 318 Share suresh sangwan 29 Nov 2016 · 1 min read जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले भूल गई हूँ अब वे दिन पचपन वाले जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले हँसी मुझे तेरी कितनी प्यारी लगती हर मुस्कान मुझे तेरी न्यारी लगती और बढ़ी... Hindi · कविता 1 241 Share suresh sangwan 28 Nov 2016 · 1 min read यही है इल्म मिरा यही हुनर भी है यही है इल्म मिरा यही हुनर भी है नहीं फसील-ए-अना यही गुज़र भी है बसी है कहाँ इंसानियत जानूं हूँ यहाँ चेहरों पे मेरी नज़र भी है गली के शज़र... Hindi · कविता 211 Share