Motilal Das Language: Hindi 14 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Motilal Das 27 Jul 2019 · 1 min read डर उसने कुछ कहा मैंने कुछ सुना कुछ सुन न सका उसने साफ कहा तुम डरे हुए हो मैं कैसे कहता कि तुम भी मुझसे डरे हुए हो. Hindi · कविता 433 Share Motilal Das 23 Jul 2019 · 1 min read डर आँखें चौन्धिया गई उस डर के खबर पर लिखा था जिसमें डर की वज़ह और मेरे डर में उसका डर पैठ गया. Hindi · कविता 407 Share Motilal Das 20 Jul 2019 · 1 min read अँधेरा एक दीपक मेरे साथ चलने को है तत्पर अंधेरों के विरुद्ध मैं कैसे कहता उसे तू न चल मेरे साथ मैं ही तो हूँ वो अँधेरा. Hindi · कविता 1 255 Share Motilal Das 17 Jul 2019 · 1 min read डर मुझे डर लगता है किसी बंदूक से नहीं किसी हिंसा से नहीं बल्कि तुम्हारे विचारों से विचारों के नाख़ून इतने पैने होते हैं कि मेरे भय को बढ़ाते हैं मेरे... Hindi · कविता 264 Share Motilal Das 2 Feb 2019 · 1 min read शीर्षकहीन तुम्हारे चेहरे के आईने में मैं अपना अक़्स ढूँढू मेरे चेहरे के आईने में तुम अपना वफ़ा ढूंढो Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 254 Share Motilal Das 7 Jan 2019 · 1 min read शीर्षकहीन एक प्यार का नगमा है जीवन की यही कहानी है तू जो मिले इस जीवन बस यही तो बहता पानी है Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 206 Share Motilal Das 29 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू चूल्हे की आंच में क्यों जलती है तू Hindi · मुक्तक 254 Share Motilal Das 22 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन खुदा भी आसमां से इस जमीं को देखता होगा इस जमीं को खून से किसने रंगा सोचता होगा Hindi · मुक्तक 241 Share Motilal Das 15 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन कभी कभी ही कोई शब्द गूंजता है जेहन में और उभरती है कोरे कागज में एक मुक्कमल कविता । Hindi · मुक्तक 1 235 Share Motilal Das 15 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन कभी कभी ही कोई शब्द गूंजता है जेहन में और उभरती है कोरे कागज में एक मुक्कमल कविता । Hindi · मुक्तक 232 Share Motilal Das 10 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन मेरी तमन्नाओं की तक़दीर तुम संवार दो जीने की बहार का मतलब तुम समझा दो Hindi · मुक्तक 234 Share Motilal Das 1 Dec 2018 · 1 min read शीर्षकहीन जिन्हें हम भूलना चाहें वो ख्वाबों में आ बसते हैं जरा बता ये वक्त ज़माने को ऐसा क्यों कर होते हैं Hindi · मुक्तक 238 Share Motilal Das 30 Nov 2018 · 15 min read अस्मिता एवं अस्तित्व से जूझती कविताएँ अस्मिता एवं अस्तित्व से जूझती कविताएं - मोतीलाल जब हम कविताओं पर बात करते हैं तो बरबस हमारे ख्याल में यही आता है कि आखिर ढेर सारी कविताओं के बीच,... Hindi · लेख 3 959 Share Motilal Das 15 Nov 2018 · 1 min read माँ माँ मैं रोज सूरज के उगने और सूरज के डूबने की प्रतीक्षा करती हूँ. रसोई में चूल्हा जलाती हूँ तब मेरे लिए सूरज उग जाता है जब बुझा देती हूँ... Hindi · कविता 2 2 376 Share