Manoj Manu 1 post Sort by: Latest Likes Views List Grid Manoj Manu 23 Apr 2022 · 1 min read सिर पर छाँव पिता की,कच्ची दीवारों पे छप्पर.. सिर पर छांव पिता की, कच्ची दीवारों पे छप्पर.. आंधी-बारिश खुद पर झेले हवा थपेड़े रोके , जर्जर तन भी ढाल बने कितने मौके-बेमौके , रहते समय जान नहीं पाते... “पिता” - काव्य प्रतियोगिता एवं काव्य संग्रह · कविता 9 9 278 Share