कविता झा ‘गीत’ Tag: कविता 16 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid कविता झा ‘गीत’ 15 May 2024 · 3 min read जीने का हक़! मुझे तो पूरी जमीन चाहिए, पूरा आसमान चाहिए। चाहिए पर उड़ने को, और एक उड़ान चाहिए। रोक सके कौन मुझे, इतना दम यहाँ किस में? मैं सीता मिट्टी से जन्मी,... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · नारी का हक़ · हक़ 1 86 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read बंदर का खेल! मदारी आया, मदारी आया सुनो बच्चों और बच्चों की अम्मा बजा रहा डमरू डम डम डुम डुम डुम डम डम साथ में है एक बंदर और एक सजी धजी बंदरिया... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · जीवन का खेल · बंदर का खेल 1 98 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read बेबसी! अज़ीब बेबसी है सब लाचार, चुप चाप वक्त भी हाथों से बह गया है दुआओं में असर ज़रा कम है सूर्ख आँखें भी आज नम है बेबसी का अजब आलम... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · गरीबी · बेबसी 108 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read मेरी पहचान! कौन हूँ मैं, मेरा परिचय क्या है? क्या मैं वो जो घुटने पे चल रही, या फिर दौड़ कर कुर्सी पकड़ रही? क्या मैं वो जो बस्ता लिए स्कूल जा... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · पहचान · रूपक 144 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read पुकार! मन में हलचल करती, नींद से अनायास जगाती, वो एक ‘पुकार’ रह-रह कर, क्यों आज भी मुझे बुलाती? मैंने तो अनजाने में बस यूँ टोका, भूखा समझ कुछ खाना खिलाया,... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · नादान · पुकार · बच्ची 93 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read चाय की प्याली! प्यारी लगती सुकून देती, गरम गरम चाय की प्याली, मन को प्रसन्न कर जाती, ये सुबह की चाय की प्याली। मधुर रस में मन को डूबा जाती, एक एक घूँट... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · चाय की प्याली · रूपक 109 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read प्लास्टिक की गुड़िया! प्लास्टिक की गुड़िया सी बेजान चुप चाप एकदम शांत हिलाने डुलाने पे उठाने पे आँखें खोलती आवाज़ निकालती बिना सोचे समझे एकदम बेमन हंस देती किसी को देख बड़ी बड़ी... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · प्लास्टिक की गुड़िया 128 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read श्रृष्टि का आधार! अब नहीं चिंता किसी को, फ़िक्र नहीं ज़रा भी तेरी आज, उठना होगा स्वयं से तुझे हे नारी! करना होगा प्रतिघात। सहने की उम्र गयी, बीत गए लम्हे सब जल... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · नारी- श्रृष्टि का आधार · स्वयं शक्ति 107 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read मूरत रंग बिरंगी सुंदर मूरत, सजी धजी बेजान सी, क्या जाने किस घर जाएगी, ओढ़े कपट की परिधान सी। सजा कर ले जाएगा कोई, धर हाथ वचन खाएगा वो, जीने मरने... Poetry Writing Challenge-3 · 25 कविताएं · कविता · मूरत · मूरत की क़ीमत · रूपक 91 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read वैवाहिक चादर! बड़े प्यार से माँ ने अपने ख़ाली समय में सिखाया था अपनी बेटी को कढ़ाई और बुनाई और इस कला को संस्कार की गठरी में बांध दिया था चुप-चाप। बेटी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · लड़की का विवाह · विवाह 94 Share कविता झा ‘गीत’ 14 May 2024 · 1 min read विनती कल जोड़ प्रथम नमन तुमको करते आदि शक्ति। संसार का मूल आधार है तू और तुझसे ही नियति। स्वच्छ कर मन करे यज्ञाहुति में तुमको अर्पण। पावन अग्नि में निर्मल... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · विनती 2 128 Share कविता झा ‘गीत’ 3 Feb 2021 · 1 min read जब तुम मिलोगे प्रिय! कैसे भर नयन उठा तुझे देखूँगी, संकोच से हृदय भार कैसे सम्भालूँगी, इन अश्रुओं से तेरे पाँव पखारूँगी, अपने स्पंदन को कैसे रोक पाऊँगी, जब तुम मिलोगे प्रिय! तेरा बाट... "कुछ खत मोहब्बत के" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 30 56 822 Share कविता झा ‘गीत’ 26 Jan 2021 · 1 min read मेरा भारत महान?? देश मेरे! तू मेरी जान मेरे माथे की तिलक मेरे मन का स्वाभिमान मेरे सर का पग उस से जुड़ी शान भारत गणतंत्र महान पावन यज्ञ समान तिरंगा है जिसकी... Hindi · कविता 1 528 Share कविता झा ‘गीत’ 20 Jan 2021 · 1 min read ठूँठा पेड़ (बुज़ुर्ग पिता) सड़क के किनारे खड़ा ठूँठा पेड़ आते जाते सब को देखता रहता जीवन से ना-उम्मीद, दिशा हीन चुप-चाप खड़ा रहता वो ठूँठा पेड़। किसी ने लात मार ठुकराया उसे तो... Hindi · कविता 7 7 754 Share कविता झा ‘गीत’ 15 Jan 2021 · 1 min read हाँ मैं किसान हूँ। मुख की मीठी रोटी हूँ, जीवन का आधार हूँ, हाँ मैं किसान हूँ। भूखे रहकर सींचता, रक्त से खेत हल जोतता, भले ख़ाली हो पेट जिस पर चले राजनीति की... Hindi · कविता 12 6 925 Share कविता झा ‘गीत’ 11 Jan 2021 · 1 min read कोरोना है जिसका नाम। शक्ल है ना कोई, धुंधली है पहचान मौत के रूप में आ रहा अज़ीब मेहमान अब तो सम्भल जाओ, ना बनो नादान हल्के में मत लो, कोरोना है जिसका नाम।... "कोरोना" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 41 70 1k Share