KAPIL JAIN Tag: ग़ज़ल/गीतिका 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid KAPIL JAIN 21 May 2020 · 1 min read अलग अलग गजलो के कुछ शेर खुद में ही सफर करता हूँ,तलाश खुद की करता हूँ जानें कहाँ गुमा हूँ में, खुद को ही नही मिलता हूँ.. मैं अपने ही घरौंदे मे कुछ इस तरह गुम... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 564 Share KAPIL JAIN 21 May 2020 · 1 min read #मुझको भी एक बात आज बतानी है तुमको मुझको भी एक बात आज बतानी है तुमको कुछ गजलें लिखी है वो सुनानी है तुमको रक्खो अगर संभाल के इन यादों को मेरी कुछ लम्हें और यादें ही मेरी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 476 Share KAPIL JAIN 31 Mar 2020 · 1 min read अलग अलग गजलो के कुछ शेर बहुत समय के बाद खुशियों को संभालने का हुनर था नही हमे अच्छा हुआ की गम मेरे हिस्से में आ गये.. इतना भी नाराज़ तो नही था में खुद से जितना खुद को खुद... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 3 325 Share KAPIL JAIN 5 Sep 2017 · 1 min read खुद की तलाश..... जो चाहा कभी वो हासिल हुआ ही नही इस सबब मैंने कुछ भी चाहा ही नही, रूदादे सफर अब लिखें भी तो क्या खुद की तलाश मुझ में कभी खत्म... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 359 Share KAPIL JAIN 5 Feb 2017 · 1 min read मुद्दतें लगी खुद को चलना सिखाने में, मुद्दतें लगी खुद को चलना सिखाने में चंद वक़्त लगा ठोकर को मुझे गिराने में । यूँ हीं नही नज़्म-ऐ-गम लिखी जाती , जागतें हैं शायर,दर्द को कागज़ों पे लाने... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 322 Share KAPIL JAIN 15 Dec 2016 · 1 min read जब जज़्बात दिलों मे दम तोड़ते हैं..... जब जज़्बात दिलों मे दम तोड़ते हैं कहीं न कहीं तो असर छोड़ते हैं । जो है भीतर मुझ में,वो एक शख्स मुझी-सा ढूंढने को जिसे हम बाहर दौड़ते हैं... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 1 767 Share KAPIL JAIN 24 Nov 2016 · 1 min read याद आकर रोज रातों को मुझे जगाया मत कर, याद आकर रोज रातों को मुझे जगाया मत कर, रोतें हैं जाने के बाद तेरे,इतना मुझे हँसाया मत कर । तेरे होने से आसमान में उड़ती है उम्मीदें मेरी, होकर... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 360 Share KAPIL JAIN 10 Nov 2016 · 1 min read में उसे अपना बनाने में लगा रेहता हूँ.. गुजरे लम्हों को भूलाने में लगा रेहता हूँ, में उसे अपना बनाने में लगा रेहता हूँ.. ख्वाहिशें है कई,अधूरी न रेह जाय कोई, करके ये ख्याल कमाने में लगा रहता... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 367 Share KAPIL JAIN 5 Nov 2016 · 1 min read अकेले बैठतें हैं अब,जब भी कभी, अकेले बैठतें हैं अब,जब भी कभी, कुछ गजलें उतार देते हैं कागजों पर। अनसुने हो गए जब दिल-ए-अरमान सभी, खामोशियाँ उतार देते हैं कागजो पर, अकेले बैठतें हैं अब,जब भी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 727 Share