कुमार गौरव 'पागल' 2 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid कुमार गौरव 'पागल' 26 Mar 2018 · 1 min read पुकारती भारती अंग -अंग काट दिये, प्रांत -प्रांत बांट दिये, शूल चित्त में चुभे हैं, रोय रही भारती । केसरी हरे का खेल, कोई भी करे न मेल, श्वेत अब कहीं नहीं,... Hindi · घनाक्षरी 392 Share कुमार गौरव 'पागल' 24 Mar 2018 · 1 min read ख़ूब -रू से सिर्फ मैं आँखें लड़ाता ही रहा... ख़ूब -रू से सिर्फ मैं आँखें लड़ाता ही रहा। ख़्वाब में उसको मैं बस अपना बनाता ही रहा। वो बदलता ही रहा है काफ़िया सा इश्क़ में, साथ उसका मैं... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 244 Share