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जय भी, पराजय भी संग तेरे
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अनंत रहस्य की छाती पर
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भर आई यौवन में गहराई
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दूर पंछी नीड़ तेरा
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मैं शिव का नंदी, तू सवार सा है
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क्या कलिकाल श्रीकृष्ण को वध लेगा
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अनाम अपूर्ण
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किसे आवाज दूँ
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प्रेम बहुत दिनों बाद
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यक्ष प्रश्न
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जिजीविषा की जिदें
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किन्तु मेरे विजय की प्रथा
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तुम हो तुम्हारी यादें हैं
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तुम्हारी उँगलियों की छुअन को..
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प्रश्न-प्रश्न का प्रत्युत्तर किंतु
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कभी ब्रह्म, कभी ब्रह्मास्मि
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अंगूठा ग़रीब का
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मैं स्वप्न हूँ तुम्हारा
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मैं भस्म धूनि-सा अनवरत
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बसंती कोंपलें लताएं हरी
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एक पुरानी नज़्म पढ़ी आज—
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मैं स्वप्न भी हूँ, मैं साकार भी हूँ
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महबूब से कहीं ज़्यादा शराब ने साथ दिया,
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वही नूर-ओ-नाज़नीन हो तुम-
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फ़ेहरिस्त रक़ीबों की, लिखे रहते हो हाथों में,
Shreedhar
फ़ेहरिस्त रक़ीबों की, लिखे रहते हो हाथों में,
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फ़ेहरिस्त रक़ीबों की...
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