शिवदत्त श्रोत्रिय Tag: ग़ज़ल/गीतिका 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid शिवदत्त श्रोत्रिय 5 Jan 2017 · 1 min read बढ़ाए रखी है दाढ़ी.. चेहरा छिपाने, चेहरे पर लगाए रखी है दाढ़ी माशूका की याद मे कुछ बढ़ाए रखी है दाढ़ी|| दाढ़ी सफेद करके, कुछ खुद सफेद हो लिए कितने आसाराम को छिपाए रखी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 615 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 12 Dec 2016 · 1 min read किसी और का हो जाऊ क्यों होने नहीं देता वो चेहरा खुद के अलावा कहीं खोने नहीं देता किसी और का हो जाऊ क्यों होने नहीं देता || अजीब सी बेचैनी चेहरे पर रहती है आजकल तन्हाइयो मे भी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 733 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 28 Nov 2016 · 1 min read तुझे कबूल इस समय परिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समय तू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय || इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये है लब्जो से कुछ भी बोलना... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 347 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 2 Nov 2016 · 1 min read तो सच बताएगा कौन? अगर दोनो रूठे रहे, तो फिर मनाएगा कौन? लब दोनो ने सिले, तो सच बताएगा कौन? तुम अपने ख़यालो मे, मै अपने ख़यालो मे यदि दोनो खोए रहे, तो फिर... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 475 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 25 Oct 2016 · 1 min read देश का बुरा हाल है|| हर किसी की ज़ुबाँ पर बस यही सवाल है करने वाले कह रहे, देश का बुरा हाल है|| नेता जी की पार्टी मे फेका गया मटन पुलाव जनता की थाली... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 505 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 19 Sep 2016 · 1 min read सफ़र आसान हो जाए गुमनाम राहो पर एक नयी पहचान हो जाए चलो कुछ दूर साथ तो, सफ़र आसान हो जाए|| होड़ मची है मिटाने को इंसानियत के निशान रुक जाओ इससे पहले, ज़हां... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 496 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 22 Aug 2016 · 1 min read कुछ आस नही लाते हर मोड़ पर मिलते है यहाँ चाँद से चेहरे पहले की तरह क्यो दिल को नही भाते || बड़ी मुद्दतो बाद लौटे हो वतन तुम आज पर अपनो के लिए... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 4 339 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 30 Jun 2016 · 1 min read तेरे शहर मे गुज़ारी थी मैने एक जिंदगी तेरे शहर मे गुज़ारी थी मैने एक जिंदगी पर कैसे कह दूं हमारी थी एक जिंदगी || जमाने से जहाँ मेने कई जंग जीत ली वही मोहब्बत से हारी थी... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 516 Share शिवदत्त श्रोत्रिय 28 Jun 2016 · 1 min read सहारा ना था कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय वक़्त को क्यो फक़्त इतना गवारा ना था जिसको भी अपना समझा, हमारा ना था|| सोचा की तुम्हे देखकर आज ठहर जाए ना चाह कर भी भटका... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 2 462 Share