Tag: कविता
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ज़बान पे कुछ और है दिल में है कुछ और
suresh sangwan
तेरे कहे का था यकीन बहुत, जाता रहा
suresh sangwan
ख्वाहिशों में खुद को उलझा के निकलती हूँ
suresh sangwan
जीती हूँ फिर से वे दिन बचपन वाले
suresh sangwan
यही है इल्म मिरा यही हुनर भी है
suresh sangwan