प्रवीण शर्मा Tag: कविता 60 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 प्रवीण शर्मा 6 Mar 2018 · 1 min read जवान वो ईमान है ,भारत के लाल है वो बेईमान जो सत्ता का पालनहार है । वो जवान शहीद हुआ उसका किसको गुमान रहा है वो रक्त लाल बीज बोए ,... Hindi · कविता 356 Share प्रवीण शर्मा 19 Jan 2018 · 1 min read पृकृति की अनुपम छठा प्रभात में सूरज की लालिमा अम्बर में छाई है , ,, उठकर, तू निंदिया रानी से आई है ,। निःशा के चक्षु के पलको में तू खोई है । भोर... Hindi · कविता 517 Share प्रवीण शर्मा 16 Jan 2018 · 1 min read दिल।में जगह बनना चाहता हु में अपने किसी परिवार की ख़ुशी बनना चाहता हु जो।मुझे अपना ले ,में स्नेह का बंधन बनना चाहता हु । चटपटी लड़ाई को अपने प्रेम रस के रूह में भरना... Hindi · कविता 175 Share प्रवीण शर्मा 15 Jan 2018 · 1 min read केश का मोल बहुत सुंदर रचना ? शिवराज कसाई हो गया ,, देखकर मुंडन को हर भाई रोया । समर्थन में आया एक फिल्मी नायक बन गया शिवराज कुर्सी का खल नायक ।... Hindi · कविता 383 Share प्रवीण शर्मा 14 Jan 2018 · 1 min read बेटी बेटी बेटी कभी न दीजिए उस घर में श्री मान ,,, जिस घर में खिले न बेटी की मुस्कान ।। वो हंमारी पायल सी कली है दहेज भेड़ियों से क्यों... Hindi · कविता 482 Share प्रवीण शर्मा 13 Jan 2018 · 1 min read जनता की बदहाली यही है केसी सरकार चल क्यों रहा मुंडन सँस्कार उड़ा रहे नेता पैसा पैसा केश कट रहा है अध्यापकों का केस । यह तो गुंडों का राज नही क्यों देते... Hindi · कविता 1 475 Share प्रवीण शर्मा 11 Jan 2018 · 1 min read माँ की ममता का मोल सुनो मेरी कविता आज ,, लरज्जति अम्मा की आवाज । बोलो मुझसे आप कहिए मांगे बेटे से दस मात्र रूपये । सुनकर हो गया बेटा हैरान ,, दस रुपये का... Hindi · कविता 706 Share प्रवीण शर्मा 11 Jan 2018 · 1 min read जावरा की दुखदायी घटना जावरा , कतारबन्द में सजी बेकरी ,, सर्व धर्म की आस्था में सजी टेकरी । हुआ वहाँ ऐसा क्यों गेंगरेप ,, कट गई पर्स पैसा की जेब । न बची... Hindi · कविता 444 Share प्रवीण शर्मा 11 Jan 2018 · 1 min read कभी ख़ुशी खभी गम है आज के जमाने में क्या ख़ुशी क्या गम है ? इससे तो हंमे परिवार से आभास है ।। कोई पास कोई दूर कोई आसपास ,,,, वो है मजबूर जो हंमे... Hindi · कविता 572 Share प्रवीण शर्मा 8 Jan 2018 · 1 min read भारत माँ का बंटवारा माजी तेरी किश्ती के तलबगार बहुत है ,,,, इस और कुछ मगर उस और बहुत है । जिस शहर में खोली है शीशे की तूने दुकान ,,उस शहर में पत्थर... Hindi · कविता 575 Share Previous Page 2