के. के. राजीव Tag: कविता 9 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid के. के. राजीव 20 Feb 2019 · 1 min read मेरी आंखों में... मेरी आंखों में, एक अधूरा सा ख्वाब है। हर वक्त अब जेहन में, तुम्हारा ही ख्याल है। जीवन में विरानगी का मंजर था हर तरफ, तेरे आगमन से मौसम में... Hindi · कविता 330 Share के. के. राजीव 20 Feb 2019 · 1 min read उन्मुक्त हो, स्वच्छंद हो... उन्मुक्त हो, स्वच्छंद हो मेरे 'प्रेम' की अनुबंध तू। हो मेरी अनुरागीनि, मेरी कविताओं का छंद तू। प्यार की "पुष्पांजलि" हो मेरे हार की है 'द्वंद' तू। पतझर की हरियालीयाँ,... Hindi · कविता 308 Share के. के. राजीव 20 Feb 2019 · 1 min read तुमको शक़ है मेरे अस्तित्व पर... तुमको शक़ है मेरे अस्तित्व पर, मेरे वर्तमान पर मेरे भविष्य पर, शंसय को यथार्थ मिल जायेंगा हर संभव था तेरे आशिष पर।।। जो दहलीज पर पड़ा है बेशक ठुकरा... Hindi · कविता 202 Share के. के. राजीव 10 Oct 2018 · 1 min read पत्ते बिखर-बिखर सी गई पत्ते बिखर-बिखर सी गई टूट-टूट कर डाली से, अनबन हो गई हो जैसे बसंत को हरियाली से।।। अंग-अंग अब टूट रही है झुम रही पूर्वाइ से, कुम्हला गई है यौवन... Hindi · कविता 247 Share के. के. राजीव 10 Oct 2018 · 1 min read मेरे जिस्म-ओ-जान पर... मेरे जिस्म-ओ-जान पर, इख़्तियार सा है उसका । वो कहती है मुझसे मोहब्बत नहीं है उसको, फिर भी गले लगाएगी इंतजार सा है उसका। जिस्म तन्हा है और रूह प्यासी... Hindi · कविता 253 Share के. के. राजीव 10 Oct 2018 · 1 min read मैं चराग हूँ डूब मरने की हसरत है मेरे दिल में , अब लहरों से मेरा वास्ता क्या? नफ़रत का नकाब है अब तेरे रुख पर, फिर हाथों मेें गुल क्या, गुलदस्ता क्या?... Hindi · कविता 219 Share के. के. राजीव 10 Oct 2018 · 1 min read बेताब ऑखो की ख्वाहिशें बेताब ऑखो की ख्वाहिशें अब मरने लगी है, रूह का तिनका टूट-टूट कर झरने लगी है। दर्द-ए-दिल की दास्तान जो दफ्न थी दिल मेें, खुश्क हवाओं की चोट से फिर... Hindi · कविता 234 Share के. के. राजीव 10 Oct 2018 · 1 min read जो लिख न सका जो लिख न सका, वो अधूरी कहानी कह रहा है। भवर में है दरिया, मौजों की रवानी कह रहा है। जाने किस तरह उतर आई वो मेरी गीतों, गजलों में...... Hindi · कविता 378 Share के. के. राजीव 4 Jul 2018 · 1 min read मृग मरीचिका नसीहतें इश्क में एक बार नही, बार-बार हमें मिलता रहा... मरीचिका के तरह छुप-छुप कर वो मुझसे दूर जाती रही... प्यासे मृगा के तरह भटकता-भटकता हुआ, मैं उसके करीब जाता... Hindi · कविता 374 Share