अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 26 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 25 Jul 2022 · 2 min read साँझ ढल रही है फिर साँझ ढल रही है , बयार चल रही है, तिरोहित होते सूर्य का, पहाड़ी आलिंगन कर रही है नभ नील वर्ण त्यागकर , श्याम में घुल जाएंगे चन्द्र के... Hindi · कविता · हिन्दी कविता 2 325 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 20 Jul 2021 · 1 min read 'राग और रोग' बन जाऊँ जो पूरिया धनाश्री , सुकून की तुम्हें नींद दूँ । हो जाऊँ जो मालकोश तो , तनाव से तुम्हें मुक्ति दूँ । शिवरंजनी से सुखद अनुभूति , मोहनी... Hindi · कविता 547 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 20 Jul 2021 · 1 min read " मैं आनन्दित हो गया हूँ " अबोध हूँ , अनभिज्ञ हूँ .. संसार के रीति-रिवाजों से जकड़ा हूँ.. घुमक्कड़ी जिज्ञासा और बटोही बनकर, लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा हूँ । प्रकृति की गोद में आकर आज... Hindi · कविता 1 193 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 17 Jul 2021 · 1 min read काश मेरी भी दादी होती.... जो मुझे हँसाती, खेल खिलाती मेरी खुशी में खुश हो जाती कभी गोदी में बैठाकर लाड़ प्यार करती तो कभी डाँट फटकार लगाती और रोने पर वो मुझे चुप करवाती... Hindi · कविता 489 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 17 Jul 2021 · 1 min read कौन हूँ मैं ? एक नन्हा सा दीप हूँ मैं , मुझे अंधकार में रोशन तो होने दो । एक महकती हवा सा हूँ मैं, मुझे मन्द मन्द बहने तो दो। नीलाम्बर सा हूँ... Hindi · कविता 244 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 10 Jul 2021 · 1 min read दर्द .... धुँधली आंखों से देख रही हूँ मै , क्या बदहाल हो गए हैं मेरे पहाड़ के.... हमने क्या नही किया इस पहाड़ के लिए, जहां कभी सोना उगता था इस... Hindi · कविता 1 289 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 10 Jul 2021 · 1 min read कभी कभी सोचता हूँ मैं .... अगर मैं पक्षी होता , लम्बी उड़ान गगन की ओर भरता, दिन भर धरा से ऊपर उठकर, शाम को अपने आशियाने में होता । कभी - कभी सोचता हूँ मैं... Hindi · कविता 2 4 413 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 3 min read अतीत इन सर्द शामों में अंगीठी के पास बैठकर चाय की चुस्कियां लेना.. कान पर लगाए ईयरफोन में , राग खमाज में झूमती ठुमरियाँ सुनना.. कुछ अलग ही अहसास है इस... Hindi · लेख 332 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read अंधेरे में कैद हूँ.. (कोरोना ) तप रहा हूँ मैं अलग पड़ा हूँ एक कोने में सुन रहा हूँ शब्द सबके लिपटे भय के बिछौने में.. कंप रही है आत्मा और कंप रहा शरीर क्यों है... Hindi · कविता 309 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read कौन हो तुम ? जब मैं पढ़ रहा था कालिदास , पन्त, और द्विवेदी को तब समाज के उच्चवर्गीय बुद्धिजीवी लोग अमीर खुशरो , मिर्जा गालिब और शेक्सपियर को लेकर घूम रहे थे ।... Hindi · कविता 286 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 2 min read ऋषिकेश सुबह के 7:00 बज चुके थे और मैं अभी भी गंगा तट पर एकान्त बैठा था। रोज की ही तरह आज गंगा मैया शांत थी। ना कोई लहर ना कोई... Hindi · लेख 476 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read उत्तराखण्ड त्रासदी जो न सोचा था उन्होंने कभी उस दिन का मंजर देखकर डर गये थे सभी. वह पल बहुत ख़ौफ़नाक था जब सब कुछ तबाह हो रहा था छीन लिया कुदरत... Hindi · कविता 215 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read कहाँ जाते हैं वो लोग अपनो से रूष्ट होकर आंखों में अश्रु देकर स्मृतियों को छोड़कर मित्र परिचितों को भूलकर अपना देह त्यागकर इस धरती से.. कहाँ जाते हैं वो लोग... माँ बाप के हृदय... Hindi · कविता 228 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 2 min read महादेव महादेव कितने सौम्य हैं आप। गले मे सर्प, कानों में बिच्छू, वस्त्रों में बाघम्बर , दुनिया जिनसे दूर भागती है उन्हें आपने अपना आभूषण बना रखा है । चन्दन लगाने... Hindi · लेख 278 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read जब तुम आओगे जैसे धरा गगन को निहारे प्रातः खग कलरव सुनाएं खूब हिलोरें लेती गंगे और जैसे वर्षा की फुहारे ऐसे ही बहार ले आना तुम जब तुम आओगे -------- कीटों में... Hindi · कविता 320 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read काश मेरी भी दादी होती जो मुझे हँसाती, खेल खिलाती मेरी खुशी में खुश हो जाती कभी गोदी में बैठाकर लाड़ प्यार करती तो कभी डाँट फटकार लगाती और रोने पर वो मुझे चुप करवाती... Hindi · कविता 453 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 3 min read नारी कई बार मन मे प्रश्नों के उबाल आते हैं .. आखिर नारी के व्यक्तित्व पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं ? नारी पुरुषों से कम कभी थी ही नहीं ..... Hindi · कविता 359 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read प्रतीक्षा देह झुलसाती आषाढ की गर्मी , पूस माह की कंपकपाती सर्दी , सावन में कडकडाती बिजली, और चारों तरफ झमाझम बारिश... ये सब मेरे लिये एक जैसा ही था, क्योंकि... Hindi · कविता 424 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read विरह सुना है धरती से विदा होने वाले लोग , सूर्यास्त के बाद विचरण करते हैं आकाश में तारे बनकर मैं इन अनगिनत तारों में कहाँ देखूं तुम्हें .. ? इन... Hindi · कविता 347 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read भय और मास्क मुक्त भारत कर्म निकृष्ट तो किये हैं हमने, जो मुँह छुपाये बैठे हैं । एक छोटे से मास्क से हम , अपनी जान बचा रहे हैं। दुबके छुपके भटक रहे हैं, हम... Hindi · कविता 360 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 3 min read सुहाना सफर गाँव जाने की तैयारी और कौथिग-मेलों की बहार हो, दिल मे उमंग और अपनो से मिलना जैसे त्यौहार हो । मिट्टी सबसे अच्छा रंग है वो भी अपनी जन्मभूमि का,... Hindi · कविता 498 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 1 min read क्या लिखूँ आज सोचा कुछ लिखूं ! पर क्या? उन सूखे पत्तों पर लिखूं ? जो बसंत में नवपतियाँ थी... और आज जीर्ण अवस्था में सुषुप्त पड़ी आत्मदाह की प्रतीक्षा में है...... Hindi · कविता 1 2 220 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 3 min read अभिलाषा सारी रात बैंच पर बैठे बैठे प्रवीन प्रतीक्षा करता रहा । सुबह 5:00 बजे हल्की सी झपकि आई ही थी कि तब तक कानों में आवाज पड़ी - " बधाई... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 2 4 449 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 9 Jul 2021 · 7 min read कुटरी कुट़री मात्र तीन वर्ष की थी जब उसके माता-पिता का केदारनाथ अपादा में देहांत हो गया था। कुट़री बिल्कुल अनाथ हो गई थी। एैसे समय में उसका लालन-पालन उसके मामा... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 1 2 552 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 3 Mar 2017 · 1 min read " मेरा बचपन " छोड़ आया मैं अपना बचपन, जहाँ हर दिन था खुशियों का त्यौहार , उस खिलखिलाती बसंत का मैं, था इक गुनगुनाता सितार । भाते न थे मुझे बनावटी खिलौने, माटी... Hindi · कविता 364 Share अमित नैथानी 'मिट्ठू' (अनभिज्ञ) 2 Mar 2017 · 1 min read " मैं पुष्प बनना चाहता हूँ " मैं पुष्प बनना चाहता हूँ, मैं प्रकृति के रंगों में रंगना चाहता हूँ , सौन्दर्य का प्रतीक बनकर मैं अपनी सुन्दरता बिखेरना चाहता हूँ , काँटों के बीच रहकर भी... Hindi · कविता 351 Share