Kirtika Namdev Language: Hindi 25 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Kirtika Namdev 17 May 2024 · 1 min read अपयश डर नहीं लगता, हैरानी भी नहीं होती। गुस्से में अब उसको देखकर, क्यूँ पलकें भिगो दी। दिल करता है समा लूँ, ग़म उसका ले लूँ उसकी ग़र हो इजाजत तो... Poetry Writing Challenge-3 106 Share Kirtika Namdev 17 May 2024 · 1 min read तुम गए हो यूँ तुम गए हो यूं, ये मुझे क्या हो रहा है। तुम गए हो यूं, आज आसमान भी रो रहा है।। कल तक तो साथ मेरे, आज क्यूँ बेदिली सी है।... Poetry Writing Challenge-3 · उर्दू हिंदी ग़ज़ल 70 Share Kirtika Namdev 17 May 2024 · 1 min read क्य़ूँ अपना सर खपाऊँ मैं? क्य़ूँ अपना सर खपाऊँ मैं? बेहतर है उसको ही जाकर बताऊँ मैं। फैसला लेना छोड़ दूँ उस ही पर, ग़र वो ना कह दे, फ़िर नज़र न आऊँ मैं।। ग़र... Poetry Writing Challenge-3 62 Share Kirtika Namdev 16 May 2024 · 1 min read टूटता तारा जो तारा टूट रहा होता है चमक भी उसी में होती है। जो शख़्स मर रहा होता है जीने की सबसे ज्यादा ललक भी उसी में होती है। जो खिलाड़ी... Poetry Writing Challenge-3 1 79 Share Kirtika Namdev 16 May 2024 · 1 min read जंग अभी भी जारी है समय आ गया है, अब उठने की बारी है। करके वह दिखलाना है,जो जंग अभी भी जारी है।। जिनको तुमसे है उम्मीदें, उन्हें मत मारना। आग-सी दहक रही यह ज्वाला,... Poetry Writing Challenge-3 1 52 Share Kirtika Namdev 16 May 2024 · 1 min read सत्य तो सत्य होता है सत्य तो सत्य होता है, थोड़ा कड़वा होता है। किंतु, हमेशा ही काम काम आए, यह जरूरी तो नहीं।। बल्कि सत्य तो बली मांगता है। किसी का दिल दुखा कर,... Poetry Writing Challenge-3 78 Share Kirtika Namdev 16 May 2024 · 1 min read इस दफ़ा मैं न उफ़्फ़ करूंगा। इस दफ़ा मैं न उफ़्फ़ करूंगा। चुपके से अपना रोना रो लूंगा।। तुम अपना समय लो, मैं हूँ यहाँ। पर अब ना किसी से, मैं अपने अंतर्पट खोलूंगा।। उस वक्त... Poetry Writing Challenge-3 63 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read विरह की वेदना ये फूल जुदा होता है डाली से। देखा नहीं जाता है यह माली से।। दृश्य कुछ ऐसा होता है, कि फिर माली के लिए सब कुछ पैसा होता है। 2... Poetry Writing Challenge-3 · अलगाव · कर्म · छलावा · फ़ूल और माली · विरह वेदना 1 77 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read ख़ाली मन खाली ख्याल, कैसे मचे फ़िर बवाल। वन-उपवन,जल-थल,गृह-नभ और कुंठित मन, जीवन, शोक और बस सवाल।। कंपित मन, मैला जीवन, छाया अंधियारा चहुं ओर, किसकी कहनी, कैसे सुनते, मन निकला कायल,... Poetry Writing Challenge-3 · *खुद की खोज* · 25 कविताएं · ख़ाली मन · ज्वाला 1 97 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 2 min read आदमी कहलाता हूँ क्या मैं सच में भाग रहा हूँ चीजों से! क्या मैं सच में डरपोक हूँ।। क्या नहीं होता अब, क्या यह सच है? या केवल तेरे दिमाग़ की उपज है।।... Poetry Writing Challenge-3 · अटल बिहारी · आदमी · हिंदी कविता 1 95 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read क्या कहा? क्या कहा? महसूस होता है तुम्हें! मतलब जिंदा हो तुम। मग़र रोते नहीं हो खुलकर, क्या बात है? किसी ने लगता है नहीं देखीं, आँखों की गहरी मुस्कुराहट तुम्हारी...! हँसना,... Poetry Writing Challenge-3 58 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read तुम मुझमें अंगार भरो तुम मुझमें अंगार भरो। तुम मुझमें श्रृंगार करो।। चाहे तुम देखो मुझ में। अपने जीवन की मधुशाला।। टूट रहा जो भीतर से। क्या उसको दिखलाओगे? लिख दे तू कुछ ऐसा... Poetry Writing Challenge-3 · कविता · प्रेरणादायक कविता · मधुशाला · सत्य · हरिवंशराय बच्चन जी 92 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read अच्छा लगता है! अच्छा लगता है! लिखकर कुछ सच्चा लगता है। खुद को जिंदा पाती हूँ, मन से और मुस्काती हूँ। गीत फ़िर गुनगुनाती हूँ, राह पर बढ़ती जाती हूँ।। शायरी नहीं कल्पना... Poetry Writing Challenge-3 1 83 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read मैं झूठा हूँ, भीतर से टूटा हूँ। मैं झूठा हूँ, भीतर से टूटा हूँ। मैं आलसी, बेबस मानुष हूँ।। मैं खुश को ना:खुश कर भी दूँ, मैं पाक़ नहीं, मृगतृष्णा हूँ, मैं सोचता हूँ, मैं मानुष हूँ।... Poetry Writing Challenge-3 2 37 Share Kirtika Namdev 15 May 2024 · 1 min read ख़ुद से सवाल गहरा है, अवसाद है। वजूद है, फ़िज़ूल है? नहीं!!! कच्चा है, घड़ा है। घमंड है, मनुष्य है। शुद्ध है,प्रकृति है। काला है, मन है। पागल है, चंचल है। अस्थिर है,... Poetry Writing Challenge-3 1 44 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read घर का बड़ा हूँ मैं माँ कहती है संभल जा, क्योंकि घर का बड़ा हूं मैं। जिम्मेदारियां हैं, घर का बड़ा हूं मैं। सारी छूट है मुझको, और ज़िद पर अड़ा हूं मैं। तुम कहते... Poetry Writing Challenge-3 40 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read जिंदगी के रंग तू गहरे की जगह हल्का रंग थी, बात यह है कुछ अटपटे ढंग-सी। तूने जो कुछ भी किया, अपने ऊपर सबका दुख लिया। फिक्र नहीं की खुद की, इसका उन्होंने... Poetry Writing Challenge-3 32 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read एक सत्य मेरा भी अच्छा लगता है! लिखकर कुछ सच्चा लगता है। खुद को जिंदा पाती हूँ, मन से और मुस्काती हूँ। गीत फ़िर गुनगुनाती हूँ, राह पर बढ़ती जाती हूँ।। शायरी नहीं कल्पना... Poetry Writing Challenge-3 34 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read कलम कहती है सच मेरी कलम बोलती है सच, तभी वह कहते हैं कि अब बस। यह मैं जो बनती जा रही हूं अब, नहीं है इस पर मेरा कोई वश।। हर दर से... Poetry Writing Challenge-3 37 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read पत्थर भी रोता है मैंने मुझ में मुझको देखा और फिर देख तुझ को। पाया दोनों को एक-सा, अन्य बाह्य मोह-माया।। रूह तो तेरी हो चुकी, तन जाएगा जल। हां मैं देख रही हूं,... Poetry Writing Challenge-3 37 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read स्व अधीन स्वीकृति से पहले होगा तिरस्कार। डटे तुम रहना मगर, न मानना हार।। विरोधी आएंगे, तुम लेकिन तपस्वी बनना। काला तम निचोड़ फेंककर, जाना सागर पार।। जूते किस्मत के, नहीं पड़े... Poetry Writing Challenge-3 44 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read मन: स्थिति क्यों मैं उनके दुख को नहीं महसूस करता! क्यों नहीं मैं लिखता, क्यूँ! सब कुछ तो बिकता है! क्यूँ नहीं मैं बिकता! आज आसमान भी खाली है, अकेला है। जिंदगी... Poetry Writing Challenge-3 36 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read मैं दिन-ब-दिन घटती जा रही हूँ यदि हर कोई दुश्मन बन जायेगा, तो दोस्त कौन रहेगा! इसी सोच को अमल में लाकर सभी से दोस्ती निभा रही हूँ। हां, मैं दिन-ब-दिन घटती जा रही हूँ।। कभी... Poetry Writing Challenge-3 52 Share Kirtika Namdev 14 May 2024 · 1 min read दिल की बात जबां पर लाऊँ कैसे? मैं मर रहा हूँ भीतर, उसको बताऊँ कैसे? दिल की बात जुबां पर लाऊँ कैसे? यूँ तो आते हैं कई सारे बहाने मुझको, खोखली रुह मर रही है जो, जताऊँ... Poetry Writing Challenge-3 35 Share Kirtika Namdev 13 May 2024 · 1 min read पिता और प्रकृति मूल प्रेरणा:- कितना दूर जाना होता है पिता से, पिता जैसा होने के लिए । — अज्ञेय (रचना:-) मैं हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा सा दूर जाती हूँ पिता से, पिता जैसा... Poetry Writing Challenge-3 · अज्ञेय · जीवन · पिता · प्रकृति · मधुशाला 1 111 Share