आशा शैली 60 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 आशा शैली 26 Jan 2024 · 1 min read विवशता सम्पादक महोदय ने सुझाया रचना की धार छुरी की तरह सान पर चढ़ा कर पत्थर पर घिस कर पैनी, और पैनी, और पैनी करो इतनी पैनी तीखी और धारदार कि... Hindi 151 Share आशा शैली 14 May 2023 · 1 min read पागल हूँ न? हाँ! मैं पागल हूँ क्योंकि मुझमें हिम्मत है सच बोलने की कह सकती हूँ मैं नहीं बनाना मुझे कोई विश्व कीर्तिमान आदर्श नारी का रात को रात और दिन को... 228 Share आशा शैली 14 May 2023 · 1 min read कृष्ण होने का अर्थ कृष्ण होना कठिन हैकृ कृष्ण? हाँ! कृष्ण! वो, जो पैदा हुआ था अन्याय की छाया में ज़ंजीरों के बीच उसे दुनिया ईश्वर मानने लगी क्योंकि वह जो सदा ही नज़र... 172 Share आशा शैली 14 May 2023 · 1 min read न्याय तुला और इक्कीसवीं सदी सुनो गाँधारी! काश! ये न्याय की तुला तुम्हारे हाथ में न होती हाँ! मैं ठीक कह रही हूँ। जब तक तुला तुम्हारे हाथ में नहीं थी तब तक होता था... Poetry Writing Challenge · कविता 350 Share आशा शैली 24 Dec 2017 · 1 min read ग़ज़लें बड़ी अजीब सी बातें जनाब करते हैं नदी की धार में हैं पानियों से डरते हैं हमें है खौफ़ बिजलियाँ जला न दें घर को वगरना हम तो सावनी रुतों... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 234 Share आशा शैली 19 Dec 2017 · 1 min read रोक लें महाभारत जानती हूँ हाँ-हाँ! जानती हूँ किसने दिया था शाप सगर के पुत्रों को जानना चाहते हो तो जान लो उन्हें शापित किया था सत्ता के अहंकार ने दम्भ ने और... Hindi · कविता 244 Share आशा शैली 16 Dec 2017 · 1 min read भविष्य प्रश्न कैसा होता है भविष्य? हर पल अदृश्य हर कल जी हाँ! आने वाला हर कल! होता है मात्र छल छिपा रहता है पर्दे के पीछे जिसे पकड़ने के लिए अकुलाती... Hindi · कविता 701 Share आशा शैली 13 Dec 2017 · 1 min read ग़ज़ल रखो अपने लिए ऐ रहबरो यह फ़लसफ़े अपने सफ़र में मुझको काम आएंगे मेरे हौसले अपने मैं किन अपनों की बातें कर रही हूँ आप हैरां हूँ हवस में माल-ो-ज़र... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 614 Share आशा शैली 29 Nov 2017 · 1 min read बेचारा दिन दीपावली का दिन त्योहार तो है पर मेरे लिए हर दिन की तरह आया है यह दिन भी कोई खास बात नहीं सुबह सवेरे ही शुरू हो गई थी मित्रों... Hindi · कविता 566 Share आशा शैली 28 Nov 2017 · 1 min read नदिया हूँ मैं गीतों की प्रसव वेदना झेल चुकी हूँ नदिया हूँ पर्वत से चल सागर से पहले कहाँ रुकी हूँ राह रोकते पथ के शैल और गिरि कानन भावों के प्रवाह... Hindi · कविता 504 Share Previous Page 2