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नया साल
'अशांत' शेखर
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
...और फिर कदम दर कदम आगे बढ जाना है
'अशांत' शेखर
मेरे बस्ती के दीवारों पर
'अशांत' शेखर
खेल और राजनीती
'अशांत' शेखर
बस एक कदम दूर थे
'अशांत' शेखर
उम्र के हर एक पड़ाव की तस्वीर क़ैद कर लेना
'अशांत' शेखर
धुंधली यादो के वो सारे दर्द को
'अशांत' शेखर
अक्सर कोई तारा जमी पर टूटकर
'अशांत' शेखर
मेरी हस्ती का अभी तुम्हे अंदाज़ा नही है
'अशांत' शेखर
उनके जख्म
'अशांत' शेखर
प्यार,इश्क ही इँसा की रौनक है
'अशांत' शेखर
ना आप.. ना मैं...
'अशांत' शेखर
वो इँसा...
'अशांत' शेखर
हमेशा..!!
'अशांत' शेखर
वो भी तन्हा रहता है
'अशांत' शेखर
बहुत गुमाँ है समुंदर को अपनी नमकीन जुबाँ का..!
'अशांत' शेखर
सोचता हूँ के एक ही ख्वाईश
'अशांत' शेखर
लाख कोशिश की थी अपने
'अशांत' शेखर
इतना बवाल मचाएं हो के ये मेरा हिंदुस्थान है
'अशांत' शेखर
अपनों को थोड़ासा समझो तो है ये जिंदगी..
'अशांत' शेखर
उस पार की आबोहवां में जरासी मोहब्बत भर दे
'अशांत' शेखर
यूँ तो समुंदर बेवजह ही बदनाम होता है
'अशांत' शेखर
यूँ तो कही दफ़ा पहुँची तुम तक शिकायत मेरी
'अशांत' शेखर
क्यूँ ख़्वाबो में मिलने की तमन्ना रखते हो
'अशांत' शेखर
उस दर्द की बारिश मे मै कतरा कतरा बह गया
'अशांत' शेखर
यूँ मोम सा हौसला लेकर तुम क्या जंग जित जाओगे?
'अशांत' शेखर
अपना समझकर ही गहरे ज़ख्म दिखाये थे
'अशांत' शेखर
अब उतरते ही नही आँखों में हसींन कुछ ख़्वाब
'अशांत' शेखर
मैं गहरा दर्द हूँ
'अशांत' शेखर
कल चाँद की आँखों से तन्हा अश्क़ निकल रहा था
'अशांत' शेखर
नींद का चुरा लेना बड़ा क़ातिल जुर्म है
'अशांत' शेखर
जब अपने ही कदम उलझने लगे अपने पैरो में
'अशांत' शेखर
तेरी नादाँ समझ को समझा दे अभी मैं ख़ाक हुवा नहीं
'अशांत' शेखर
दूरियों में नजर आयी थी दुनियां बड़ी हसीन..
'अशांत' शेखर
हम रंगों से सजे है
'अशांत' शेखर
ज़मी के मुश्किलो ने घेरा तो दूर अपने साये हो गए ।
'अशांत' शेखर
ये आँखों से बहते अश्क़
'अशांत' शेखर
अगर किरदार तूफाओँ से घिरा है
'अशांत' शेखर
बड़ा मुश्किल है ये लम्हे,पल और दिन गुजारना
'अशांत' शेखर
अक़्सर बूढ़े शज़र को परिंदे छोड़ जाते है
'अशांत' शेखर
सौंधी सौंधी महक मेरे मिट्टी की इस बदन में घुली है
'अशांत' शेखर
बहुत ऊँची नही होती है उड़ान दूसरों के आसमाँ की
'अशांत' शेखर
तेरी मिट्टी के लिए अपने कुएँ से पानी बहाया है
'अशांत' शेखर
दुनियां की लिहाज़ में हर सपना टूट के बिखर जाता है
'अशांत' शेखर
उनकी महफ़िल में मेरी हालात-ए-जिक्र होने लगी
'अशांत' शेखर
फिर वो मेरी शख़्सियत को तराशने लगे है
'अशांत' शेखर
वो बीते हर लम्हें याद रखना जरुरी नही
'अशांत' शेखर
उसकी जुबाँ की तरकश में है झूठ हजार
'अशांत' शेखर
ये भी सच है के हम नही थे बेइंतेहा मशहूर
'अशांत' शेखर