Anil Mishra Prahari Tag: मुक्तक 11 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Anil Mishra Prahari 17 Nov 2022 · 1 min read परवाना । जल-जलकर इस तरह भी बिखर जाना होता है मुहब्बत में बेवफा नहीं परवाना होता है। a m prahari. Hindi · मुक्तक 188 Share Anil Mishra Prahari 17 Nov 2022 · 1 min read फूलों से। पत्तों को छूती है, कलियों को सहलाती है हवा जब फूलों से खुशबू चुराती है । a m prahari. Hindi · मुक्तक 272 Share Anil Mishra Prahari 10 Oct 2022 · 1 min read ऐतबार । वो क्या लड़ेंगे लहरों से जो खुद पर ऐतबार नहीं करते, सिर्फ किनारों पर चलने वाले दरिया को पार नहीं करते। anil mishra prahari. Hindi · मुक्तक 1 269 Share Anil Mishra Prahari 3 Dec 2019 · 1 min read हवस में कहाँ। जलन है नहीं मेरे तन की ये यारों मेरे प्राण धू- धू जले जा रहे हैं, न आखों में पानी, नहीं नेक नीयत हवस में कहाँ हम चले जा रहे... Hindi · मुक्तक 535 Share Anil Mishra Prahari 22 Nov 2019 · 1 min read आदमी को आदमी से प्यार हो। धर्म की न जाति की तकरार हो नस्ल का उड़ता नहीं अंगार हो, एक नई दुनिया बना ऐसी विधाता जहाँ आदमी को आदमी से प्यार हो। अनिल मिश्र प्रहरी। Hindi · मुक्तक 1 347 Share Anil Mishra Prahari 21 Oct 2019 · 1 min read न मंजिल मिली। दिखाके गगन के चमकते सितारे सलीके से खुद को छले जा रहे हैं, न मंजिल मिली न पता कोई इसका न जाने कहाँ हम चले जा रहे हैं। अनिल मिश्र... Hindi · मुक्तक 259 Share Anil Mishra Prahari 30 Sep 2019 · 1 min read धधकी ज्वाला में। धधकी ज्वाला में जब लोहा गलता है नये रूप में भाग्य तभी तो ढलता है, जो अपने को पतझड़ तक पहुँचा न सका वृक्ष कहाँ वह डाली - डाली फलता... Hindi · मुक्तक 1 331 Share Anil Mishra Prahari 10 Sep 2019 · 1 min read मुक्तक फेर गया है चाँद हमारे सपनों पर आँखों का पानी रूप सलोने, मदिर, मनोहर चेहरे ने की ये नादानी! Hindi · मुक्तक 1 337 Share Anil Mishra Prahari 9 Sep 2019 · 1 min read मुक्तक वह कैसी तलवार कि जिसमें धार नहीं है कौन कहेगा सिन्धु जहाँ मँझधार नहीं है, सिर्फ ताप के लिए जले वह ज्वाला कैसी आँखों से न बरसे तो अंगार नहीं... Hindi · मुक्तक 1 667 Share Anil Mishra Prahari 7 Sep 2019 · 1 min read गुरूर। हममें - तुममें गुरूर न होता यह फासला जरूर न होता। अनिल। Hindi · मुक्तक 315 Share Anil Mishra Prahari 3 Sep 2019 · 1 min read मुक्तक सूखी जमीं पर मेघों को गरजते देखा समंदर में जाकर उन्हें बरसते देखा, मेरे शहर में झुग्गी-झोपडी की कमी नहीं जहाँ बचपन को हर चीज पर तरसते देखा। अनिल कुमार... Hindi · मुक्तक 321 Share