Shubha Mehta 23 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Shubha Mehta 14 Sep 2016 · 1 min read पिंजरे की मैना पिंजरे की मैना ये किसे सुनाये दास्ताँ दिल की कितनी खुश थी पेड़ों पे वो दिन भर चहकती रहती थी इस डाल से उस डाल पर इस टहनी से उस... Hindi · कविता 1 1k Share Shubha Mehta 26 Nov 2016 · 1 min read उड़ता पंछी मैं , उड़ता पंछी दूर -दूर उन्मुक्त गगन तक फैलाकर अपनी पाँखें उड़ता हूँ कभी अटकता कभी भटकता पाने को मंजिल इच्छाएँ ,आकांक्षाएँ बढती जाती और दूर तक जाने की... Hindi · कविता 2 3 1k Share Shubha Mehta 2 Nov 2018 · 1 min read माँ ममता की छाँव जीवन की नाव स्नेह की मूरत प्यारी- सी सूरत सिखाती है बुनना सपनों को वो लगने ना देती कभी उनमें गांठ उससे ही सीखा है मैंने जीवन... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 13 48 659 Share Shubha Mehta 27 Oct 2016 · 1 min read दीपावली लो आई फिर दीपावली चलो ,इस बार मन के किसी कोने में दीप जलाएं इक शांति का , प्रीती का , स्नेह का फिर इस मनदीप से दीप से दीप... Hindi · कविता 1 3 702 Share Shubha Mehta 1 Sep 2016 · 1 min read फर्क बंगले में रहने वाली मेमसाब से पूछा महाराज ने आज क्या बनेगा ? पालक पनीर या शाही पनीर बिरियानी और खीर ? मेडम बोलीं बना लो सभी कुछ । उधर... Hindi · कविता 6 712 Share Shubha Mehta 16 Aug 2016 · 1 min read वक्त ये तो वक्त -वक्त की बात है कभी मिलता है ,तो कभी मिलाता है कभी खा़मोश सा बैठाता है कभी कहकहे लगवाता है तो कभी अनायास ही रुलाता है कभी... Hindi · कविता 2 669 Share Shubha Mehta 29 Mar 2018 · 1 min read उम्मीद... न जाने किस उम्मीद मेंं पथराई आँखें रोज़ टकटकी लगा देखा करती बंद दरवाज़े को निरंतर...... इक आस है अभी भी दिल के किसी कोने मेंं कि इक दिन जरूर... Hindi · कविता 630 Share Shubha Mehta 23 Jun 2018 · 1 min read ठूँठ हाँ ..... ठूँठ हूँ मैं आते-जाते सभी लोग लगता है जैसे चिढ़ाते हुए निकल जाते मुझे भेजते लानत मुझ पर कहते - कैसा ठूँठ सा खड़ा है यहाँ इसके रहते... Hindi · कविता 2 1 634 Share Shubha Mehta 18 Aug 2016 · 1 min read बंधन रक्षा का बंधन बंधन अनोखा शहद में भीगा मीठा-मीठा रसीले आम सा जिसमें भरा है जीवन रस कितने सुहाने थे बचपन के वो पल गुजा़रे थे जो हमने साथ साथ... Hindi · कविता 3 549 Share Shubha Mehta 4 Nov 2016 · 1 min read जिंदगी जिंदगी क्या है ? समझ न पाई कभी लगती है कभी अबूझ पहूली सी कभी प्यारी सहेली सी कभी खुशनुमा धूप सी कभी बदली ग़मों की फिर अचानक , छँट... Hindi · कविता 2 586 Share Shubha Mehta 24 May 2018 · 1 min read तपती दुपहरी.. जेठ की इस तपती दुपहरी में हाल -बेहाल पसीने से लथपथ जब काम खत्म कर वो निकली बाहर घर जाने को बडी़ गरमी थी प्यास से गला सूखा....... घर पहुँचने... Hindi · कविता 1 536 Share Shubha Mehta 17 Aug 2016 · 1 min read झूला एक वृक्ष कटा साथ ही कट गई कई आशाएँ कितने घोंसले पक्षी निराधार सहमी चहचहाहट वो पत्तों की सरसराहट वो टहनियाँ जिन पर बाँधते थे कभी सावन के झूले बिन... Hindi · कविता 4 530 Share Shubha Mehta 11 Nov 2016 · 1 min read सवेरा उठो ,जागो मन हुआ नया सवेरा आ गए आदित्य लिए आशा किरन नई रमता जोगी गाए मल्हार झूम रहे खग वृंद नाचे गगन अपार कलियाँ चटक उठीं, चटक कर करा... Hindi · कविता 564 Share Shubha Mehta 11 Sep 2016 · 1 min read दूसरा पहलू देखा पलट के पीछे की ओर था नज़ारा वहाँ कुछ और होठों पे थी मुस्कान जैसे ओढ़ी हुई उस के पीछे छुपा दर्द भी देखा था मैनें हक़ीक़त यही थी... Hindi · कविता 8 532 Share Shubha Mehta 20 Oct 2016 · 1 min read मेरा बचपन वो बस्ता लेकर भागना सखी सहेलियों से कानाफूसियाँ भागदौड में चप्पल टूटना नाश्ते के डब्बे कपड़ो पर स्याही के धब्बे माँ से छुपाना ओक लगाकर पानी पीना खेल की छुट्टी... Hindi · कविता 484 Share Shubha Mehta 20 Aug 2016 · 1 min read लोग बंद किवाड़ो की दरारों से झाँकते लोग दीवारों से कान लगाकर कुछ सुनते -सुनाते लोग लगाकर उसमें नमक -मिरच किस्से घडते -घडाते लोग शब्दों केअभेद्य बांण चलाकर दिलों को तार-तार... Hindi · कविता 4 414 Share Shubha Mehta 22 Aug 2016 · 1 min read रिश्ते बडे़ अजीब होते हैं रिश्ते कुछ बने बनाए मिलते हैं तो कुछ बन जाते हैं और कुछ बनाए जाते हैं स्वार्थ पूर्ती के लिए कैसे भी हों,आखिर रिश्ते तो रिश्ते... Hindi · कविता 3 431 Share Shubha Mehta 27 Aug 2016 · 1 min read संज्ञा जी हाँ, संज्ञा हूँ मैं। व्यक्ति या वस्तु? कभी-कभी ये बात सोच में डाल देती है रूप है, रंग है आकार भी है दिल भी ,दिमाग भी फिर भी कभी... Hindi · कविता 8 393 Share Shubha Mehta 28 May 2019 · 1 min read आओ , मिलकर वृक्ष लगाएँ चलो .....,कुछ अच्छा करते हैं सब मिलकर ,कुछ अच्छा करते हैं ले आओ कुछ बीज वृक्षारोपण करते हैं चलो ..कुछ अच्छा करते हैं वट ,पीपल ,नीम ,गुलमोहर आम,अनार और अमरूद... Hindi · कविता 3 2 414 Share Shubha Mehta 17 Jan 2019 · 1 min read मानवता मानव , कहाँ छुपी है तेरी मानवता शायद दब गई है मन के किसी कोने में तेरी इच्छाओं ,महत्वाकांक्षा के बोझ तले आगे निकलने की होड़ में या फिर मुझे... Hindi · कविता 1 338 Share Shubha Mehta 7 Sep 2016 · 1 min read मन उड़ चल रे मन कर ले अपने सपनों को पूरा देखे थे जो तूने कभी मत देख आसमाँ को बन्द कमरे की खिड़की से चल,बाहर निकल और देख खुले आसमाँ... Hindi · कविता 330 Share Shubha Mehta 14 Nov 2018 · 1 min read बाल दिवस मन करता है चलो आज मैं , फिर छोटा बच्चा बन जाऊँ खेलूं कूदूं ,नाचूँ ,गाऊँ उछल उछल इतराऊँ मन करता है... खूब हँसूं मैं मुक्त स्वरों मेंं धमाचौकड़ी मचाऊँ... Hindi · कविता 2 1 293 Share Shubha Mehta 19 May 2019 · 1 min read गुलमोहर सडक के उस पार गली के छोर पर हुआ करते थे दो गुलमोहर ... बडे़ मनोहर लगते थे मुझे जब लद जाया करते थे फूलों से ..... एक केसरी और... Hindi · कविता 2 287 Share