मुक्तक
हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं,
अलग ही रास्ते फिर आँधी और तूफ़ान लेते हैं,
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना,
कहाँ हम भी किसी मग़रूर का अहसान लेते हैं।
हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं,
अलग ही रास्ते फिर आँधी और तूफ़ान लेते हैं,
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना,
कहाँ हम भी किसी मग़रूर का अहसान लेते हैं।