मुक्तक
इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था ,
मुझे मिटाकर भी मेरी किस्मत बना रहे थे, पता नहीं था,
हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं,
किरन के घूँघट में मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था।
इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था ,
मुझे मिटाकर भी मेरी किस्मत बना रहे थे, पता नहीं था,
हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं,
किरन के घूँघट में मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था।