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5 Sep 2018 · 1 min read

मुक्तक

इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था ,
मुझे मिटाकर भी मेरी किस्मत बना रहे थे, पता नहीं था,
हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं,
किरन के घूँघट में मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था।

Language: Hindi
450 Views

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