मुक्तक
दस्तूर क्या ये शहरे-सितमगर के हो गए,
जो सर उठा के निकले थे बे सर के हो गए,
ये शहर तो है आप का, आवाज़ किस की थी?
देखा जो मुड़ के हमने तो पत्थर के हो गए ।
दस्तूर क्या ये शहरे-सितमगर के हो गए,
जो सर उठा के निकले थे बे सर के हो गए,
ये शहर तो है आप का, आवाज़ किस की थी?
देखा जो मुड़ के हमने तो पत्थर के हो गए ।