मुक्तक
“ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा,
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम,
अब देंगे क्या किसी को ये झोंके बहार के,
माँगेंगे दिल के ज़ख़्म भी पुरवाइयों से हम “
“ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा,
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम,
अब देंगे क्या किसी को ये झोंके बहार के,
माँगेंगे दिल के ज़ख़्म भी पुरवाइयों से हम “