मुक्तक
” कभी सोचा न था इक दिन मेरा भी हश्र ये होगा,
मगर अब सोचती हूँ कैसे हाथ आयेगी ज़िन्दगी,
बहुत वीरानगी है अब यहाँ पर दिल नहीं लगता,
न जाने कब फिर से अब गुनगुनायेगी ज़िन्दगी “
” कभी सोचा न था इक दिन मेरा भी हश्र ये होगा,
मगर अब सोचती हूँ कैसे हाथ आयेगी ज़िन्दगी,
बहुत वीरानगी है अब यहाँ पर दिल नहीं लगता,
न जाने कब फिर से अब गुनगुनायेगी ज़िन्दगी “