Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 May 2018 · 1 min read

सत्यवीर का प्रेमिल सत्यापन

“सत्यवीर का प्रेमिल सत्यापन”

‘इक पावस ऋतुओं पर भारी’ काव्यकृति युवाकवि श्री अशोक सिंह ‘सत्यवीर’ के भावोद्गार की अनुपम भेंट है । इसमें प्रसाद, बच्चन और नरेंद्र शर्मा की भावभूमि को स्पर्श करने का प्रयास किया गया है। प्रकृति, प्रेम, सौंदर्य, विरह आदि छायावादी और स्वच्छन्दतावादी विषय रचनाकार को उनकी रुचि एवं संस्कार से परिचय कराते हैं ।

श्री सत्यवीर की कविता उर की गहराई से उपजी है; विरह-व्यथित मन अधीरता से कह उठता है-

” स्वत: स्फुरित प्रेम-शिखा में दग्ध हुए उर-पातक-संकुल।”

कवि का प्रेम ऐन्द्रिय नहीं है; वह सत्वोद्रेक से पूर्ण है, शुद्ध तपाये खरे सोने की तरह-

“प्रेम-तितीक्षा अनुपम साधन, हृदय खरा सोना बन जाये”; “पीड़ा का अतिरेक तभी है, विरही जब विदेह बन जाये।”

इस गीत संग्रह में मिलन की तुलना में विरह के अधिक गीत हैं । कहा भी गया है कि विरह प्रेम की कसौटी है। कदाचित्‌ कवि ‘सत्यवीर’ उसी कसौटी का प्रस्तुत गीत संग्रह में सत्यापन करते पाये जाते हैं ।

इक्कीसवीं सदी के तमाम वैचारिक आयामों को अपने प्रेमिल दायरे में समेटने की उलझन से दूर प्रकृति की गोंद में प्रेम की बाँसुरी की धुन उन्हें ज्यादा चैन देती है और यह उनकी अपनी काव्य-सर्जना की सीमा भी है । फिर भी उनका रचनात्मक कदम हिन्दी कविता की स्वच्छन्दतावादी कविता को विकास देने में सक्रिय माना जायेगा ।

डाॅ योगेन्द्र प्रताप सिंह
प्रोफेसर
हिन्दी विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय
30/04/16

Loading...