Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 May 2018 · 1 min read

लालच का असर

लच लच लच रहा , लालच की ओर सदा।
लालच के आगे आज, मानव भी सो गया।
लूट, लूट, लूट, लूट, लूट ही मचाये सदा।
दानवी प्रवृत्तियों में, मानव ही खो गया।
बेच बेच खाया लाज, ईमान भी गया चाट।
धरम के नाम से भी, जग पाप बो गया।
दीन हो अमीर हो या, साधु-संत कोई यहाँ।
लालची जनों का ज्यादा, अनुपात हो गया।।

★★★★★★★■

रात-दिन एक काम, गुठली के लेके दाम।
आम-आम देखो कैसे, खास खास हो गये।
चला करते थे कल, घुटनों के बल पर।
आज सब राजाजी के, आसपास हो गये।
माया-मोह ने जकड़, रखी चित को पकड़।
पुत्र जो कुबेर के थे, लक्ष्मी दास हो गये।
लालच न आया जिन्हें, कलम चलाते रहे।
लिख-लिख, पढ़-पढ़, कविदास हो गये।।

★★★★■■■

संतोष बरमैया #जय
कुरई, सिवनी, मप्र.

Loading...