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6 Mar 2018 · 1 min read

ये भुख हैं साहब

तकलीफ पेट की चेहरे से बयां करनी पड़ती हैं। ये भूख है साहब हम जैसे को हर रोज़ ऐसे ही सहनी पड़ती हैं ।।हर दिन एक उमंग के साथ जाग जाती है हर शाम इक आस के साथ डूब जाती है । ना किसी चीज़ की उम्मीद पूरी होती है ना इस पेट का दर्द । ये मज़बूरी ही समझ लो साहब हर दिन ऐसे ही गुजारना पड़ता है । थोडी सी खुशी के साथ बहुत से गम सहने पड़ते है । एक आस के साथ हर रोज़ निकल पड़ते है । काश आज कोई मुकाम मिल जाये इस भूख लाचारी की कोई दवा मिल जाये । इस हालत ने हमे बहुत कुछ सीखा दिया ।साहब इन दो हाथों ने पेट भरकर तो नही पर थोड़ा सा तो चुप करा ही दिया ।

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