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28 Dec 2017 · 1 min read

“मुक्तक”

“मुक्तक”

चलत निक लागे चंद्रमा, नचत निक लागे मोर।
गुंजन निक लागे भ्रमर अली, सु-सहज नयन चितचोर।
निक लागे फुलत कलियाँ, महकत झुरझुर बयार-
हिलत डुलत कटि काछनी, मलत बछवा कर लोर॥-1

अति प्रिय लाग बौर आम का, मदन महुआ रस बोर।
सूर्य प्रभात जिय लालिमा, मासे कार्तिक बरध ज़ोर।
भुन मटर चना की फोतरी, माघी मूली अचार-
निक लागे कचरस कोल्हू, मलकत ओस शशि भोर॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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