Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Dec 2017 · 2 min read

"झिनकू भैया का झुनझुना” (घुनघुना)

“झिनकू भैया का झुनझुना” (घुनघुना)
झिनकू भैया को बचपन से ही झुनझुना बहुत पसंद था, जो आज भी किसी न किसी रूप में बज ही उठता है। कभी महँगाई की धुन पर झनझना जाता है तो कभी भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बेरोजगारी, भूखमरी, बलात्कार इत्यादि पर आफरीन हो जाता है झिनकू भैया का घुनघुना। बजा बजा के थक गए पर न कन छूटा न भूसी निकली। बड़े ही जोश, ताव में नया घुनघुना बाजार से लाते हैं और उस अबोध बच्चे की तरह से नाच नाच कर बजाते है जो अपने मन में यही सोचता है कि लोग खूब ध्यान से नए घुनघुने को सुनकर खुश हो रहे हैं और मुझे शाबासी दे रहे हैं काश वह बच्चा जान पाता कि किसी को घुनघुने में कोई रस नहीं है, बड़ा होने पर तो लोग तासा बजाते हैं और स्वार्थ की लय पर नाचते हैं जैसे मदारी का जमूरा। कुछ उसी प्रकार के हैं झिनकू भैया न बचपना छोड़ पाए न घुनघुना।
आज कल नया राग अलाप रहें हैं, खनन पर रोक लगी है, बड़े बड़े बिल्डर बालू का पहाड़ जमा किये हुए है और झिनकू भैया एक ट्रॉली बालू का 20,000 रुपया देकर अपने पुराने मिट्टी वाले घर को गिराकर नए घर की नींव डलवाने के लिए दुकान से मिन्नत कर के बालू लाकर अपने आँख में किरकिरी डाल रहें हैं, और लोग कहते हैं कि घुनघुना बजा रहे है। बड़े बड़े पैसे तमगे वाले लोग नदी और तालाब पाटकर गगनचुम्बी शयन खंड का मजा ले रहें हैं तो वहीं कोई असहाय झिनकू भैया जैसा आदमी अपने घर का गड्ढा भरने के लिए अपने खेत की मिट्टी उठा लिया तो सीधे जेल और आजीवन कारावास का भागी हो रहा है। अब ऐसे खनन रोक पर झिनकू भैया अपना घुनघुना रुला रहें हैं तो इस पर भी उन्हें इल्जाम के दायरे में लाना, कहीं से भी जायज नहीं लगता।
अभी कल की ही बात है रावण, दशहरे में फूँका गया, चार दिन बाद दीपावली का दीपक घर घर जलेगा, बेचारा कुम्भार माटी निकाले तो खनन माफिया के तगड़े जुर्म में हवालात की शोभा बढ़ाएगा और महान नेता, समाज सुधारक नैतिक लोग, ज्ञानी विज्ञानी, पढ़े लिखे सफेद कॉलर संभ्रांत लोग हाथ जोड़-जोड़कर मिट्टी के दीये से दिवाली मनाने की गुहार लगा रहें हैं। न जाने किसको सुना रहे हैं, किससे अपील कर रहे हैं। उनके घरों में मिट्टी से कोई वास्ता तो है नहीं, जिनको मिट्टी में रहना है मिट्टी में मिलना है उससे मिट्टी के लिए कैसी विनती?। अब पटाखे पर बैन लगा तो कितनों की नींद हराम हो गई, प्रदूषण घटने-बढ़ने लगा, बिना आवाज और धुएं के ही। लगता है दीपावली के दिन छुरछुरी ही मंगल गीत गाएगी और भकजोन्हिया सगुन मनाएगी। अब ऐसे-ऐसे नीति- नियम और रखवाले हैं तो झिनकू भैया का घुनघुना बजता ही रहेगा। जायज नाजायज की किसको पड़ी है।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

Loading...