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7 Oct 2017 · 1 min read

गीत

आँख से झरे मोती
हथेली पर तुमने
सम्भाल लिये थे
उस दिन जाने क्यू ?
क्या था क्यू था
पता नहीँ ,नमी
आज भी है
कमी सिर्फ तेरी
है ,इंतजार…
तुम आओ
अश्क मिरे से
दामन भीगा है
आजकल..
जलते ,दहकते
अल्फाज अंगार
नज्में कैसे हो
स्याही सूख रही
कलम रूठ रही
तपते अधर
पुकारे पल पल
सहरा है जीवन ,
नहीँ अशेष…
देह का पखेरू
फ़ड़फ़ड़ा रहा
निशि बासर
नयन तारक
बाट जोहे
विरह की यामिनी
नागिन सी डस रही
जाने कब उड़ जाये
रूह का राही
मिल लेना
मॆरी रुख्तगी
से पहले
भटकेगी ज़ीस्त इर्द गिर्द
कस्तूरी सी महके
पहली ओ आखिरी
तलाश सिर्फ तुम !

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