Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
4 Oct 2017 · 1 min read

पीर

हम कबसे खड़े थे सहारे की तलाश में,
वो आज भी न आयीं पड़ोस की दुकान में।
मैं देखता रहा दिन, दोपहर, रात और जीवन ढल गई,
सनम फिर भी न आये औरों संग शमशान में।।
….

उनकी चाहत में हम तो बेजार हो गये,
लोग कहते हैं मुझको बेकार हो गये।
आश उनकी थी जबतक था रौनक यहाँ,
आज लगता है उजड़े बाजार हो गये।।….
………..

…..पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Loading...