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4 Oct 2017 · 1 min read

जीवन के दिन रात

भाई मेरे बन गए, तब से अतिथि समान ।
जबसे उनके हो गए, अपने अलग मकान।।

एक छोर पर ख्वाहिशें ,.. दूजे पर औकात!
जिसमे फँस कर रह गये,जीवन के दिन रात! !

आएेंगे हद मे कई, निश्चित ही कुछ यार!
किया दुश्मनों का अगर,बेनकाब रुखसार ! !
रमेश शर्मा.

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