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3 Sep 2017 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक
सजा कर प्रीत के सपने लिए तस्वीर बैठे हैं।
इबादत में सनम तुझको बना तकदीर बैठे हैं।
छलावा कर रही दुनिया यहाँ जज़्बात झूठे हैं-
बने रांझा मुहोब्बत में समझ कर हीर बैठे हैं।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)

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