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17 Jul 2017 · 1 min read

दर्द चिर सोत रहा

विधा- नवगीत
दर्द चिर सोता रहा
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चाहतें सहमी हुई हैं
आहटों को सुन पुकारे।

दर्द चिर सोता रहा
अश्रु की चादर लपेटे।
छुप गयी संवेदनाएं
मुट्ठियों में दिल समेटे।

डर रही परछाइयों से
चल रही तम के सहारे।

आंधियां हर रोज आकर
खटखटातीं खिडकियां।
सब विखर जाता भले ही
मौन मन की झांकियां।

हूँ अकेला जान छाया
कर रही मुझको किनारे।

भाग आया हर किसी के
भाग के दुख को चुराकर।
पर रिवाजों को निभाते
गिर पडा हूँ लडखडाकर।

अब किन्हीं चिन्गारियों ने
पथ नहीं मेरे सँवारे।
चाहतें सहमी हुई हैं
आहटों को सुन पुकारे।
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अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ,मुरैना (म.प्र.)

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