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9 Jul 2017 · 1 min read

गीतिका

मिला जब साथ प्रियतम का सँवरना आ गया हमको।
कली से फूल बन करके महकना आ गया हमको।।1।।

उदधि जग में चली लेकर बिना पतवार के नौका,
लगी ठोकर जमाने की सँभलना आ गया हमको।।2

जिसे आराध्य माना था समर्पित कर दिया सब कुछ,
रुखाई देखकर उसकी मचलना आ गया हमको।।3

पड़े हैं पाँव में छाले बहुत ही दूर मंजिल है,
तुम्हारी चाह में प्रियवर निखरना आ गया हमको।।4

चले थे साथ जो हँसते वही फिर छोड़कर भागे,
रहा जब साथ उनका तो परखना आ गया हमको।।5।।

मनुजता तोड़ देती दम जहाँ आतंक के कारण,
समय की देखकर करवट सिसकना आ गया हमको।।6।।

मिली जब सीख कुदरत से सिमटना छोड़कर प्यारे,
हवा के साथ खुशबू- सा बिखरना आ गया हमको।।7।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय

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