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13 Mar 2017 · 1 min read

बिखर रहे हैं रंग

बिखर रहे हैं रंग। (कुण्डलिया)

१.
देखो होली आ गई, बिखर रहे हैं रंग।
मादक से हर नयन पर, जैसे चढ़ गई भँग।
जैसे चढ़ गई भँग, सभी लग पड़े बहकने।
पिचकारी के रंग, बदन पर लगे बरसने।
बात यही है सत्य, जरूरी संयम रखो।
फिर इसका आनंद, सभी मिल जुलकर देखो।
२.
समय बदलता जा रहा, बदल रही तकनीक।
स्वप्न बहुत जो दूर थे, अब लगते हैं नजदीक।
अब लगते हैं नजदीक, तरक्की कर ली हमने।
तभी सफलता आज, लगी है चरण चूमने।
बात यही है सत्य, मगर यह लगता है भय।
खोई निज पहचान, कहीं धोखा न दे समय।
३.
होली लेकर आ गई, रंगों की सौगात।
खिल जाते हैं मन सभी, बन जाती है बात।
बन जाती है बात, झूम उठती तरुणाई।
मधुर सुहानी तान, साथ गूँजे शहनाई।
बात यही है सत्य, करो मिल हँसी ठिठोली।
खुशियों का त्यौहार, मनाओ सब मिल होली।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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