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20 Feb 2017 · 1 min read

ये जाना !

जानू आज रूक जाओ ! घूँघट सँभालते हुए रश्मि ने तिरछी देख ! मुस्कराते हुए कहा ही था कि शुभ ने दबेमन कहा “मुझे जाना है ; देर हो रही है , ऑफिस के लिए । अभी तक तो घर ही पर तो था !” नयी सर्विस जो थी और वह निकल गया था । नई नवेली रश्मि यही सोच रह गयी कि क्या ये वही जानू हैं जो मेरे एक इशारे पर कहीं भी और सबकुछ छोड़ चल देते थे और आज बस “जाना है” की रट लगा चलते बने ! मुझे छोड़ ।
ऑफिस पँहुच बिलंब हेतु सिर्फ “साॅरी” बोल शामिल हो लिया था ! समय पर आने वाली टीम में ।
दोपहरी का भोजन करते ही उसे रश्मि की याद सताने लगी थी व उसकी बात भी कि आज न जाओ ! काम तो खत्म था पर ड्यूटी समय नहीं अतः रश्मि की याद में जा पँहुचा अपने बाॅस के पास और बोला कि “सर ! जाऊँ ; अब !” तो उन्होंने पूॅछा कि काम खत्म हो गया क्या ? शुभ बोला “जी ! हाँ !” तो फिर सवाल कि ड्यूटी ?? इसपर वह निरूत्तर था और उसके मायूसी भरे चेहरे को देख बाॅस ने कहा जाओ पर इतना सुन लो कि घर से आते समय भी जाने की जिद और यहाँ आने पर भी जाने की जिद ! यह ठीक नहीं ! कहीं पर सुधार कर लो !
पर वह तो मन ही मन रश्मि का चेहरा याद करता बस कहता जा रहा था कि जाना है…!

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