Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Aug 2016 · 2 min read

खजाना

पिता के अंतिम संस्कार के बाद शाम को दोनों बेटे घर के बाहर आंगन में अपने रिश्तेदारों और पड़ौसियों के साथ बैठे हुए थे| इतने में बड़े बेटे की पत्नी आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कहा| बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई की तरफ अर्थपूर्ण नजरों से देखकर अंदर आने का इशारा किया और खड़े होकर वहां बैठे लोगों से हाथ जोड़कर कहा, “अभी पांच मिनट में आते हैं”|

फिर दोनों भाई अंदर चले गये| अंदर जाते ही बड़े भाई ने फुसफुसा कर छोटे से कहा, “बक्से में देख लेते हैं, नहीं तो कोई हक़ जताने आ जाएगा|” छोटे ने भी सहमती में गर्दन हिलाई |

पिता के कमरे में जाकर बड़े भाई की पत्नी ने अपने पति से कहा, “बक्सा निकाल लीजिये, मैं दरवाज़ा बंद कर देती हूँ|” और वह दरवाज़े की तरफ बढ़ गयी|

दोनों भाई पलंग के नीचे झुके और वहां रखे हुए बक्से को खींच कर बाहर निकाला| बड़े भाई की पत्नी ने अपने पल्लू में खौंसी हुई चाबी निकाली और अपने पति को दी|

बक्सा खुलते ही तीनों ने बड़ी उत्सुकता से बक्से में झाँका, अंदर चालीस-पचास किताबें रखी थीं| तीनों को सहसा विश्वास नहीं हुआ| बड़े भाई की पत्नी निराशा भरे स्वर में बोली, “मुझे तो पूरा विश्वास था कि, बाबूजी ने कभी अपनी दवाई तक के रुपये नहीं लिये, तो इस बक्से में ज़रूर उनकी बचत के रुपये और गहने रखे होंगे, लेकिन यहाँ तो हमारे विश्वास के साथ…..”

इतने में छोटे भाई ने देखा कि बक्से के कोने में किताबों के साथ एक थैली रखी हुई है, उसने उस थैली को बाहर निकाला| उसमें कुछ रुपये थे, और साथ में एक कागज़| उसने रुपये गिने और उसके बाद कागज़ को पढ़ा, उसमें लिखा था, “मेरे अंतिम संस्कार का खर्च”

Loading...