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22 May 2016 · 1 min read

जीवन लीला

जीवन – लीला रहे अधूरी सुख – दुख के संयोग बिना ..

प्रीति कहाँ हो पाती पूरी कुछ दिन विरह वियोग बिना..

खट्टे – मीठे सभी स्वाद से सजी गृहस्थी की थाली ..

पार कहाँ लगती है नैया आपस के सहयोग बिना ..

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